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स्त्री और प्रकृति

स्त्री और प्रकृति

प्रकृति और स्त्री

कितना साम्य ?

दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन

दोनों ही जननी

नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,

अन्तःस्तल की गहराइयों तक,

दोनों को रखता एक धरातल पर

दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति

बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को

दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं

प्रेम लुटातीं उन पर भी,

जो दे जाते आँसू इन्हें,

आहत कर जाते,

छलनी बना देते इनके मन को,

कुचल जाते, रौंद जाते इनके तन बदन को,

दुनियाँ की स्वार्थलिप्सा का शिकार

बनतीं बार-बार

लेकिन माफ़ कर जातीं हर बार

गफ़लत में जी रही दुनियाँ,

ये नहीं समझ पा रही

जब जागेंगीं,

दोनों, जननी और जन्मभूमि,

स्त्री और प्रकृति

दिखा देंगीं अपना रूप,

महिषासुर मर्दिनी का

करेंगी संहार असुरता का, क्रूरता का

करा देंगी साक्षात्कार

पीड़ा के उस दंश का, जो

मिलता रहा आजीवन इन्हें

अपनों से ही ।

  • मोहिनी चोरडिया

Views: 685

Comment

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Comment by satish mapatpuri on January 16, 2012 at 1:47am

मोहिनी जी, इस सशक्त रचना के लिए आपकी लेखनी और सोच को सलाम ......................... इसमें कोई संदेह नहीं कि नारी और धरती सब कुछ सह सकती है.

Comment by mohinichordia on January 15, 2012 at 8:50pm

    r आभार आप सभी का 

Comment by dr a kirtivardhan on January 15, 2012 at 8:07am

vah-vah,kya baat hai.janani aur janmbhumi ka satik chitran.

kaash aaj ki adhunikaayen bhi is rachna ki gambhirata ko samajh len jinke liye paisa tatha sharir hi sab kuchh hai.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 14, 2012 at 11:50pm

दोनों, जननी और जन्मभूमि,

स्त्री और प्रकृति

दिखा देंगीं अपना रूप,

महिषासुर मर्दिनी का

करेंगी संहार असुरता का, क्रूरता का

करा देंगी साक्षात्कार

पीड़ा के उस दंश का, जो

मिलता रहा आजीवन इन्हें

अपनों से ही ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,बेजोड़ संदेश,,,,,,,,,,,,वाह क्या बात है,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 14, 2012 at 11:49pm

वाह,,,,,,,,,,क्या खूबसूरत रचना,,,,,,मर्म को सृजन को सहनशीलता को नारी के हर पक्ष को उभारती यह कृति ,,,,,बधाई आपको,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2012 at 10:11pm

दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति ... 

बहुत ही सुन्दर !! शाब्दिकता पर ध्यान रहे. संवेदनापूरित रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ. 

Comment by mohinichordia on January 14, 2012 at 3:44pm

धन्यवाद बागी जी एवं अरुण पाण्डेय जी |

 happy pongal 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 2:38pm

मोहिनी जी सच में, प्रकृति और स्त्री में बहुत ही साम्यता है, दोनों जीवन दात्री है, दोनों पीर सहती है, यथार्थ के धरातल पर इस रचना ने बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है, बधाई इस रचना हेतु,

आपकी रचनाओं और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों का सदैव स्वागत है |

Comment by Abhinav Arun on January 14, 2012 at 12:32pm

"स्त्री और प्रकृति" की साम्यता प्रतिपादित करती इस रचना हेतु आदरणीया मोहिनी जी हार्दिक बधाई | आपकी कवितायेँ गंभीर भावो को सरलता से अभिव्यक्त करती हैं और वैचारिक धरातल पर पाठक को चिंतनशील बनाती भी हैं | इस विशेषता के लिए साधुवाद !!

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