For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये क्या किया तन्हाई !

ये  क्या  किया तन्हाई !

क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को

जो बन चुके हैं

घाव से नासूर

ढूंड पाओगी

कभी मेरा कसूर ?

गहरी साँसों का मंजर

अधूरे ख्वाबों का खंजर

जो धंस गया है दिल में

चुभनें लगा है फिर से

तुम्हारे आते ही.

कर रहा है मंथन 

भावों में

अब रिस रहा है

धीरे धीरे चीस्ते से

घावों में .

हाए वो अनलिखे मजमून

जो ख़त नहीं बन पाए

क्यों रख दिए तुमनें

तह बना कर

दिल के घावों में

और आज

क्यों खोल दी वो तह

जिनके बीच

छिपा है समंदर

पीड़ा का...

ज़मानें की निष्ठुर

क्रीडा का...

वो गुलाबी लिफाफा

जो संजोए था

अनलिखे खतों

का मजमून

क्यों तड़फ उठा है आज

तुम्हारी एक

दस्तक से ही .

ये पंखुड़ियां गुलाब की

याद दिलाती शबाब की

जो फिसल गयी थी

उनके मखमली बालों से

(याद रखना तन्हाई )

सूखी नहीं हैं आज भी .

वो गुलाबी पंखुड़ियां

ताज़ा हैं मेरी रूह में

चिपक सी गयी हैं अब तो

और दे रही हैं

एक मदहोश कर देने वाली सुगंध

जो आती थी

सिर्फ उनके गेसुओं से ही .

अरे तुम ठीक ही तो कहती हो

जब भी मैं

खोलता हूँ परतें

तो सलाख़ों पर झूलती

बारिश की बूंदें

याद दिलाती हैं

उन मोतियों को

जो नहीं तैर रहे थे

सिर्फ मेरे नयनों में ही

बल्कि एक सैलाब ले आये थे

जो रुक नहीं पाया था

उनकी आँखों में भी.

मरमरी गालों पर

छलके वो मोती और

इन नयनों का सैलाब

समझ नहीं पायी हो तुम 

इतने सालों बाद भी

हाँ तन्हाई

काश तुम समझ पाती

मैं और वो

जैसे दिया और बाती

अलग हुए ही नहीं.

कैसे हो सकते हैं विदा वो 

दिल दिमाग और मन से

समा गए हैं जो 

मेरे साँसों के प्राण में

मेरी रूह की शान में

तभी तो

धडकता है

ये दिल 

आज भी एक सुकून से

क्योंकि

वो मुझ में हैं

मैं उनमें

तन्हाई में भी

भीड़ में भी ..

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Views: 349

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 3:13pm

धन्यवाद सौरभ जी....आपके शब्द मेरा हृदय छू गए हैं .....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2012 at 4:56pm

इस रचना का होना रचनाकार के अनगिन उलझे भाव-विचारों का संयोजन है. आशावादिता की लौ बाले इस रचना का समापन मानों अदम्य विश्वास का उत्तरोत्तर संप्रेषण है. इन पंक्तियों की संवेदना पर मेरी विशेष बधाई स्वीकार करें -

हाए वो अनलिखे मजमून
जो ख़त नहीं बन पाए
क्यों रख दिए तुमनें
तह बना कर
दिल के घावों में ......    वाह - वाह !! 

सधन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service