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''है समय की दरकार''

है समय की दरकार l

ये है संसार
कभी ना
किसी पर
करना एतबार l

झूठ के खार
कब जाने
किस पर
कर देंगे वार l

खिला हरसिंगार
कब कौन
लूट जाये
पेड़ की बहार l

आज है प्यार
कल को
नफरत के
होंगें अंगार l

है समय की दरकार l

-शन्नो अग्रवाल

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Comment

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Comment by Shanno Aggarwal on January 16, 2012 at 4:38am

सतीश जी, आभारी हूँ आपकी इस सुंदर टिप्पणी के लिये. बहुत-बहुत धन्यबाद. 

Comment by satish mapatpuri on January 16, 2012 at 1:41am
सर्वप्रथम बधाई ............... शन्नो जी, आपकी यह कविता कवि श्याम की इन पंक्तियों की याद दिलाती हैं कि.................
एक दिन कृष्ण देव भाग चले आधी रात, एक दिन कंस को पछाड़ा एक क्षण में.
एक दिन रावण ने दसो दिशा जीत लिया, एक दिन दसो शीश काटे गए रण में.
एक दिन अर्जुन ने महाभारत जीत लिया, एक दिन कोल भील लूट लिए वन में.
मानुष कि गति कहाँ ले कहें श्याम कवि, जब दिनकर कि तीन गति होती एक दिन में.

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