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आबाद

हर कोना शख्सियत को  

बर्बाद करने को आतुर है,
सोचा हर कोने से ही
प्रेम कर लिया जाए...
बर्बाद होना ही अगर 
आबाद होने की निशानी है,
तो क्यों ना आज 
बर्बाद ही हो लिया जाए...
 
-योग्यता

Added by Yogyata Mishra on January 14, 2012 at 10:30am — 4 Comments

''मकर-संक्रांति की यादें और पतंगें''

खुला मौसम गगन नीला

धरा का तन गीला - गीला l

पतंगों की उन्मुक्त उड़ान

तरु-पल्लव में है मुस्कान l 

मकर-संक्रांति को भारत के हर प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. और वहाँ के वासी अलग-अलग तरीके से इस त्योहार को मनाते हैं. पंजाब में इसे लोहड़ी बोलते हैं जो मकर-संक्राति के एक दिन पहले की शाम को मनायी जाती है. और उत्तरप्रदेश में, जहां से मैं आती हूँ, इसे मकर-संक्रांति ही बोलते हैं. लोग सुबह तड़के स्नान करते हैं ठंडे पानी में. और इस दिन को खिचड़ी दिवस के रूप…

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Added by Shanno Aggarwal on January 13, 2012 at 5:30pm — 7 Comments

बचपन की यादें

वो बचपन की यादें,

वो सपनो सी यादें,
वो पतंगे उड़ाना,
वो नाव चलाना,
वो बारिश की बूँदें,
वो मिटटी की छीटें,
सपनो से प्यारी है,
अब भी वो यादें,
वो बचपन की यादें,
वो बचपन की यादें.....
वो माँ की लोरी,
वो पापा की डांट,
वो खेल में…
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Added by Yogyata Mishra on January 13, 2012 at 3:00pm — 4 Comments

आँसू

आँसू  ----



आँसू नहीं छंद होते हैं

आँसू नहीं नियम होते हैं

भावों की अनुभूति है आँसू

कभी ख़ुशी कभी गम होते हैं..

मैंने देखे सुख के आँसू

हंसते गाते झिलमिल आँसू

दुःख मे भी देखे हैं आँसू

रोते-रोते दर्दीले आँसू ..

बेटी की विदा बेला पर

छलक पड़े आँखों के आँसू

गौरव के पल आने पर भी

बह निकले आँखों से आँसू ..

कभी किसी की मृत्यु पर भी

खूब बहाए मैंने आंसू

शिशु जन्म के अवसर पर भी

रुक न सके आँखों मे…

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Added by dr a kirtivardhan on January 13, 2012 at 2:00pm — 3 Comments

पेंच जो लड़ी......

पेंच जो लड़ी......


चढ़ी पतंगे डोर पे,छूने को आकाश.

होड़ मची है काट की,उड़े पास ही पास.

उड़े पास ही पास,उमंगें नभ को छूती.

वो...काट की बोल रही,होंठों पे तूती.

कहता है अविनाश पेंच जो लड़ी,

कटी पतंगें कहलाती ,दम्भी और नकचढ़ी.

                        अविनाश बागडे.

Added by AVINASH S BAGDE on January 13, 2012 at 11:07am — 3 Comments

कुछ दिल से

ये तेरी बेरुखी की इंतेहा है या मेरी ख्वाहिशों का कसूर,

आज भी रोने के लिए हम तेरे शाने को तरसते हैं।

...........................................................................

तेरे साथ ही हूँ मगर अब वो एहसास नहीं दिखता,

जो गुदगुदा जाता था मुझे, कभी बस राहों मे तेरे मिल जाने से !

...............................................................................

दिल में सोई हुई तमन्नाओ का इज़हार करके देखो,

ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है, किसी से प्यार करके…

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Added by Vasudha Nigam on January 13, 2012 at 10:00am — 6 Comments

मुक्तक

मुक्तक

--------------



हांथों में ले कर ज़ाम रात भर,

बहकते रहे बे-लगाम रात भर,

लतीफ़े उछलते रहे मुशायरे…
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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2012 at 1:29am — 6 Comments

मत पूंछिये,,,,,,,,

मत पूंछियॆ,,,,,,,,,,

---------------------



मतलब की बात करियॆ, बेकार का हाल मत पूछियॆ ॥

जैसी भी है अपनी है, सरकार का हाल मत पूछियॆ ॥१॥



लहराती है नैया, सरकार की तॊ लहरानॆ दीजियॆ,

आप माझी सॆ मगर,पतवार का हाल मत पूछियॆ ॥२॥



चिल्लातॆ चिल्लातॆ अन्ना की तबियत तंग हुई,

अपनॆ भारत मॆं, भ्रष्टाचार का हाल…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

कर दिया,,,,,,,,,,,,,,,,

कलम को तलवार कर दिया,,,,,,,,,,

-------------------------------------



सिखाकर आप ने उपकार कर दिया ।

लो हम पे एक और उधार कर दिया ॥१॥



अब उम्र भर न अदा कर पायेंगे हम,

इस कदर आपने कर्जदार कर दिया ॥२॥



ज़माना नीलाम कर देता आबरू मेरी,

वो आप हैं जो कि खबरदार कर दिया ॥३॥…



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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:00pm — 5 Comments

मेरी आवाज़

मेरी आवाज़ .....

आवाज़,जो मुल्क की बेहतरी के लिए है,

उसे कोई दबा नहीं सकता|

दीवार ,जो मेरी आवाज़ दबा सके,

कोई बना नहीं सकता|

जब जब चाहा जालिमों ऩे,आवाज़ दबी हो,

किस्सा, कोई बता नहीं सकता|

क़त्ल कर सकते हो मेरे जिस्म को, कातिल ,

विचारों को कोई दबा नहीं सकता|

खिलेगा कोई फूल उपवन मे,देखना उसको,

खुशबू को कोई चुरा नहीं सकता|

कहाँ से पाला भ्रम अमर होने का,सियासतदानों ,

मौत से कोई पार पा नहीं सकता|

दबाओ के कब तलक मेरी आवाज़ ,दरिंदो…

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Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 3:00pm — 5 Comments

तिरंगा

तिरंगा

तीन रंग मे रंग हुआ है,मेरे देश का झंडा

केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा.

इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी

केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी.

संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ

केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा.

शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया

धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया.

महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया

शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया.

खेती से भारत ने…

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Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 12:30pm — 1 Comment

हाइकु

कुछ हाइकु

नारी----

.
बेबस नारी
परिवार पालती
रुखा खाकर.

कुल हाडी------

.
आरोपित है
जीवन देने वाली
कुल हाडी है.

आदमी----

आदमी देखो
गिरगिट सा रंग
मन मे भरा.

dr a kirtivardhan

Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

मैं और तन्हाई ...

मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 11, 2012 at 5:04pm — 1 Comment

भारतीय नव वर्ष

भारतीय नव वर्ष तथा काल गणना.......

काल खंड को मापने के लिए जिस यन्त्र का उपयोग किया जाता है उसे काल निर्णय, काल निर्देशिका या कलेंडर कहते हैं|

दुनिया का सबसे पुराना कलेंडर भारतीय है | इसे स्रष्टि संवत कहते हैं,इसी दिन को स्रष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है| यह संवत १९७२९४९११३ यानी एक अरब, सत्तानवे करोड़ ,उनतीस लाख, उनचास हज़ार,एक सौ तेरह वर्ष (मार्च २०१२ तक, विक्रम संवत २०६९ के प्रारंभ तक ) पुराना है|

हमारे ऋषि-…

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Added by dr a kirtivardhan on January 11, 2012 at 4:30pm — 3 Comments

वफा

वफाओं के किस्सों की, 
तो कोई किताब ही नहीं...
यह तो वो ज़ज्बात हैं,
जिनके लिए कोई अल्फाज़ ही नहीं...
कैसे बाँधा है किसी ने,
वफाओं को अल्फाजों में,
ये तो वो किस्से है,
जिनकी कोई जुबाँ ही नहीं...

Added by Yogyata Mishra on January 11, 2012 at 11:01am — 1 Comment

तलाश

चल पड़ा हूँ इक सफ़र पर,

एक अनजानी डगर पर |

मजिल पता है, कि जाना कहाँ है |

पर रास्ता नहीं, वो कहीं खो गया है |

वो मंजिल मैं अब हर डगर ढूँढता हूँ |

कभी तो मिलेगी, अगर ढूँढता हूँ |



जज्बों में हिम्मत, इरादे बड़े हैं |

मगर राह में ऊंचे पर्वत खड़े हैं |

इन्हें पार करना भी मुश्किल बड़ा है |

मगर अब ये बंद भी जिद पे अड़ा है|

इन्हें लांघने का सबब ढूँढता हूँ |

कभी तो मिलेगा अगर ढूँढता हूँ |



किसी कि दुआएं…

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Added by Vikram Srivastava on January 11, 2012 at 2:00am — 1 Comment

ग़ज़ल

सूद पहले फिर असल दो

इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो

जो परिन्दे छत पे आयें

उनको दाने और जल दो

शक्ल वैसी ही रहेगी

आईना चाहे बदल दो

धर्मशाला है ये दुनिया

रात काटो और चल दो

ये बदन कल तक नया था

अब पुराना है बदल दो

तुम सवेरे-शाम आओ

मेरे जीवन में खलल दो

......दीपक कुमार

Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 7:13pm — 14 Comments

पहचान नहीं होती

तूफां से सागर की पहचान नहीं होती ,

झील कितनी बड़ी हो,सागर नहीं होती|

गर दुष्टों को सम्मान मिला करता जहाँ मे,

शराफत की कोई पहचान नहीं होती|

बनता है कोई सागर सा,मन की गहराइयों से,

टूटी हुई तलवार की,कोई म्यान नहीं होती|

हीरे ,मोती,मानिक के,सब हैं लुटेरे,

हर निगाह ज्ञान के मोती की,कद्रदान नहीं होती|

किसी किसी पे बरसती है रहमत खुदा की,

बेईमानों की कीमत,उनकी जुबान नहीं होती|

भागते हैं जो लोग फकत दौलत के पीछे,

ईमानदारी की बातें,उनका इमान नहीं…

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Added by dr a kirtivardhan on January 10, 2012 at 4:00pm — 2 Comments

गीत : जब तुम बसंत बन थीं आयीं... संजीव 'सलिल'

गीत :

जब तुम बसंत बन थीं आयीं...

संजीव 'सलिल'

*

जब तुम बसंत बन थीं आयीं...

*

मेरा जीवन वन प्रांतर सा

उजड़ा उखड़ा नीरस सूना-सूना.

हो गया अचानक मधुर-सरस

आशा-उछाह लेकर दूना.

उमगा-उछला बन मृग-छौना

जब तुम बसंत बन थीं आयीं..

*

दिन में भी देखे थे सपने,

कुछ गैर बन गये थे अपने.

तब बेमानी से पाये थे

जग के…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2012 at 10:00am — 1 Comment

ग़ज़ल

सामान उठाते हैं

अब लौट के जाते हैं

दिल मेरा दुखाने को

अहबाब भी आते हैं

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं

जो टूट के मिलते थे

वो रूठ के जाते हैं

मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं

हम अपनी उदासी को

हँस-हँस के छुपाते हैं

की ख़ूब अदाकारी

पर्दा भी गिराते हैं

.......दीपक कुमार

Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments

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