For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,933)

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 4 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 5 ---------------

... एक दिन सुबह-सुबह प्रबल बाबू ने समाचार पत्र उठाया ही था किउन्हें सांप सूंघ गया... " नकली दवा के कारण सात लोगों की मौत "

खबर ने तो उन्हें झकझोर कर रख दिया. समाचार के विस्तार में लिखा था -- " सरकारी अस्पताल…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 3, 2011 at 3:00am — 2 Comments

तू इस देश का वासी है.

ताजा सिर्फ सियासी है.

बाकी सब कुछ बासी है.
दौलत के चरणों की तो,
दुनिया सारी दासी है.
आम-आदमी तन्हा है,
उसके संग उदासी है.
शपथ देश की खा लेंगे,
ये तो बात जरा सी है.
भ्रष्ट रास्तों पर चलिए,
आमद अच्छी-खासी है.
बहु-बेटियां बिकती है,
माँ की गोद रुआंसी है.
बूँद-बूँद से भरा कलश,
मछली फिर भी प्यासी है.
गंगा-जल हांथों में ले,
तू इस देश का…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on November 2, 2011 at 9:00pm — 4 Comments

व्यंग्य - किसे कराएं पीएचडी

मुझे पता है कि देश में संभवतः कोई विषय ऐसा नहीं होगा, जिस पर अब तक पीएचडी ( डॉक्टर ऑफ फिलास्फी ) नहीं हुई होगी। कई विषय तो ऐसे हैं, जिसे रगडे पर रगड़े जा रहे हैं। कुछ समाज के काम आ रहे हैं तो कुछ कचरे की टोकरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। ये अलग बात है कि कुछ विषय ही इतने भाग्यशाली हैं कि उसे जो भी अपनाता है, वह बुलंदी छू लेता है। पीएचडी के लिए मुझे लगता है कि आपमें विषय चयन की काबिलियत होनी चाहिए, उसके बाद फिक्र करने की जरूरत नहीं होती। विषय तय होने के बाद सामग्रियां जहां-तहां से मिल ही जाती हैं,…

Continue

Added by rajkumar sahu on November 2, 2011 at 11:00am — 1 Comment

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

-------------- अंक - 4 --------------- '

अंक 3 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

मैं कुछ समझा नहीं ..' प्रबल बाबू के माथे पर बल पड़ गए थे.  उनकी इस असहज स्थिति का लाभ उठाने में उमाकान्त जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. अपने सपाट से चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए उन्होंने तत्क्षण कहा -…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 2, 2011 at 2:00am — 3 Comments

लांछन

पुरुषों की सत्ता बोलें या

कुंठित शासन लगता है.
नर क़े साथ बराबर नारी!
कोरा भाषण लगता है.
औरत तेरी हालत पे
क्या-क्या और लिखा जाये?
नामर्दों की बस्ती में भी,
बाँझ का लांछन लगता है.

अविनाश बागडे.

 

Added by AVINASH S BAGDE on November 1, 2011 at 8:00pm — 6 Comments

त्यागपत्र (कहानी)



त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 2 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 3 ---------------

प्रबल बाबू को अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर कुछ खटका सा लगा और उन्होंने बीच में ही उन्हें टोकते हुए कहा -  'शायद, इस प्रसंग पर बात करने के लिए यह उचित समय नहीं…

Continue

Added by satish mapatpuri on November 1, 2011 at 2:00am — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दीप जले -- (छंद : मत्तगयंद सवैया और घनाक्षरी)

 

पाँति सजी मनभावन, पावन दीप जले,…

Continue

Added by Saurabh Pandey on October 31, 2011 at 1:30pm — 2 Comments

अमावस जैसे .. .



शब्द चुप से हैं ,कुछ अरसे से..
मन है व्याकुल सा  ,भाव तरसे से ..
घुमड़ते हुए से बादल बरसते ही नहीं  ..
जाने क्या…
Continue

Added by Lata R.Ojha on October 31, 2011 at 8:49am — 4 Comments

एक तवायफ की दास्तान

कितनी बदली हुई तकदीर नज़र आती है--ये जवानी मेरी तस्वीर नज़र आती है !!



                    
                                                         हमने सोचा न था हालात कुछ ऐसे होंगे !…
Continue

Added by Hilal Badayuni on October 31, 2011 at 12:30am — 16 Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी.

अंक 1 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

.............. अंक -- 2 .....................

राज्य के विधायकों में पी. पी. सिंह का एक अलग ही स्थान था. अपनी स्पष्टवादिता एवं निर्भीकता के लिए वे विख्यात थे.सत्तापक्ष के विधायक होने के बावजूद भी सरकार की गलत नीतियों की आलोचना वे सार्वजनिक रूप में किया…

Continue

Added by satish mapatpuri on October 30, 2011 at 11:30pm — 5 Comments

एक विचार

संघर्ष जीवन के कठिन नीरस बनाते हैं हमें

कर्तव्य-पथ के शूल भी बहुधा डराते हैं हमें

भटकें न हम हरहाल में,आगे निरंतर हम बढे

जबतक ये लक्ष्य अलक्ष्य है,न पग रुकें न मन थके..१.

 …

Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 30, 2011 at 4:30pm — 1 Comment

ग़ज़ल :- उसके होने के ही एहसास में जाकर देखो

 
 
ग़ज़ल :-  उसके होने के ही एहसास में जाकर देखो
 
उसके होने के ही एहसास में जाकर देखो ,
किसी रोते हुए बच्चे…
Continue

Added by Abhinav Arun on October 30, 2011 at 1:30pm — 11 Comments

कविता :- आदमखोर

कविता :- आदमखोर
तुमने हमारे खेतों में खड़ी कर दीं चिमनियाँ 
बिछा दिए हाई - वे के सर्पिल संसार…
Continue

Added by Abhinav Arun on October 30, 2011 at 12:30pm — 11 Comments

एक कविता: कौन हूँ मैं?... --संजीव 'सलिल'

एक कविता:
कौन हूँ मैं?...
संजीव 'सलिल'
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 30, 2011 at 10:29am — 6 Comments

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

................ अंक -- एक ...................

'प्रबल प्रताप ज़िन्दावाद ' के नारे से पंडाल गूंज उठा. पी. पी.सिंह के नाम से जाने जानेवाले प्रबल प्रताप सिंह के मंत्री बनने के उपलक्ष में इस समारोह का आयोजन हुआ था. जनता - जनार्दन के बीच उनकी अच्छी -खासी लोकप्रियता थी. उनके दर्शनार्थ भीड़ उमड़ पड़ी थी. गिरधरपुर निर्वाचन -क्षेत्र की जनता - जनार्दन को नाज़ था कि वो प्रदेश को एक मंत्री देने का गौरव हासिल करने जा रहे हैं.सच ही तो है…

Continue

Added by satish mapatpuri on October 30, 2011 at 3:00am — 5 Comments

दोहा सलिला: दोहों की दीपावली, अलंकार के संग..... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                       



दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.....



संजीव 'सलिल'

*

दोहों की दीपावली, अलंकार के संग.

बिम्ब भाव रस कथ्य के, पंचतत्व नवरंग..

*

दिया दिया लेकिन नहीं, दी बाती औ' तेल.

तोड़ न उजियारा सका, अंधकार की जेल..   -यमक

*

गृहलक्ष्मी का रूप तज, हुई पटाखा नार.     -अपन्हुति

लोग पटाखा खरीदें, तो क्यों हो  बेजार?.    -यमक,

*

मुस्कानों की फुलझड़ी, मदिर नयन के बाण. …

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 27, 2011 at 9:07am — 5 Comments

दिवाली का रूप बदल गया

जब से दिल दिवाल हुआ है, दिवाली का रूप बदल गया.

जब से नियति मलिन हुई है, अर्द्धरात्रि में धूप निकल गया.

पर पीड़ा पर होने वाली, धड़कन जानें कहाँ गयी?

संवेदना- चेतना - निष्ठा, मानवता अब कहाँ गयी ?

जब से नफ़रत- क्रोध बसा है, इंसानों का रूप बदल गया.

जब से दिल दिवाल हुआ है, दिवाली का रूप बदल गया.

रीति - रिवाज़ में लोग  बाग. अब छिपकर सेंध लगाते हैं.

पटाखों के बीच, गोलियों का भी शोर मिलाते हैं.

जब से इसका चलन हुआ है, पर्व - त्यौहार का रूप बदल…

Continue

Added by satish mapatpuri on October 26, 2011 at 2:43pm — No Comments

व्यंग्य रचना: दीवाली : कुछ शब्द चित्र: संजीव 'सलिल'

व्यंग्य रचना:                                                                                  

दीवाली : कुछ शब्द चित्र:

संजीव 'सलिल'

*

माँ-बाप को

ठेंगा दिखायें.

सास-ससुर पर

बलि-बलि जायें.

अधिकारी को

तेल लगायें.

गृह-लक्ष्मी के

चरण दबायें.

दिवाली मनाएँ..

*

लक्ष्मी पूजन के

महापर्व को

सार्थक बनायें.

ससुरे से मांगें

नगद-नारायण.

न मिले लक्ष्मी

तो गृह-लक्ष्मी को

होलिका बनायें.

दूसरी को…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 26, 2011 at 8:00am — 4 Comments

दीपावली हार्दिक शुभकामनाएं

कीजिये कामना सबके अपने मिले.

सबकी आँखों को सुन्दर से सपने मिले.

सारी धरती पे खुशियों की बरसात हो.

ईद का दिन - दिवाली की हर रात हो.

OBO परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली हार्दिक शुभकामनाएं.

Added by satish mapatpuri on October 26, 2011 at 2:53am — No Comments

दोहा सलिला : दोहों की दीपावली: --संजीव 'सलिल'





दोहा सलिला :

दोहों की दीपावली:

--संजीव 'सलिल'



दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.

श्री गणेश के बिम्ब को, अलंकार अनुमान..



दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.

सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..



अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.

माटी का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..



मन का दीपक लो जला, तन की बाती डाल.

इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..



दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.

राह अलग हर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2011 at 5:00pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service