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आदरणीय सलिल जी.....आपकी यह रचना पढ़कर स्वयं पर गर्व होता है की मैं आप के साथ एक मंच पर हूँ....एक शाश्वत प्रश्न का बहुत गहरा उत्तर....ओ बी ओ का मैं तह-ए-दिल से शुक्रिया करना चाहता हूँ जो मुझे आप गुणी जनों के बीच रहकर सीखने का महान अवसर दे रहा है......इस बेहतरीन रचना क लिए बधाई एवं धन्यवाद....:)
प्रणाम आदरणीय आचार्य जी ! इस उत्कृष्ट कविता की रचना करके आपने हम पर उपकार किया है ! इस निमित्त आपको सादर नमन करते हुए निम्नलिखित पंक्तियाँ आपको समर्पित कर रहा हूँ !
स्वर्ग हूँ अपवर्ग हूँ मैं
आत्मा की कामना हूँ
चित्त से प्राकट्य तप से
गुप्त करता साधना हूँ
क्या बताऊँ कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
सादर :
आशीष जी, सौरभ जी, अरुण जी
आपने इस रचना में पैठकर उसकी गहन पड़ताल की... आभारी हूँ. इन रचनाओं को पढ़ने-समझनेवाले विरले ही होते हैं. आपकी सराहना से इस स्तर की रचनाएँ रचने के लिए प्रोत्साहन मिलाता है. धन्यवाद.
i am everything.
agar hm bahut gahare utre tb kahi pa sakte hai us moti ko jo is rachna me hai. sabke liye hai, shart ki gahrai me utrna hoga. bahut sundar rachna.
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