For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक कविता: कौन हूँ मैं?... --संजीव 'सलिल'

एक कविता:
कौन हूँ मैं?...
संजीव 'सलिल'
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता हूँ.
काल हूँ कलकल निनादित
कँपाता हूँ, काँपता हूँ. 
जलधि हूँ, नभ हूँ, धरा हूँ.
पवन, पावक, अक्षरा हूँ.
निर्जरा हूँ, निर्भरा हूँ.
तार हर पातक, तरा हूँ..
आदि अर्णव सूर्य हूँ मैं.
शौर्य हूँ मैं, तूर्य हूँ मैं.
अगम पर्वत कदम चूमें.
साथ मेरे सृष्टि झूमे.
ॐ हूँ मैं, व्योम हूँ मैं.
इडा-पिंगला, सोम हूँ मैं.
किरण-सोनल साधना हूँ.
मेघना आराधना हूँ.
कामना हूँ, भावना हूँ.
सकल देना-पावना हूँ.
'गुप्त' मेरा 'चित्र' जानो. 
'चित्त' में मैं 'गुप्त' मानो.
अर्चना हूँ, अर्पिता हूँ.
लोक वन्दित चर्चिता हूँ.
प्रार्थना हूँ, वंदना हूँ.
नेह-निष्ठा चंदना हूँ. 
ज्ञात हूँ, अज्ञात हूँ मैं.
उषा, रजनी, प्रात हूँ मैं.
शुद्ध हूँ मैं, बुद्ध हूँ मैं.
रुद्ध हूँ, अनिरुद्ध हूँ मैं.
शांति-सुषमा नवल आशा.
परिश्रम-कोशिश तराशा.
स्वार्थमय सर्वार्थ हूँ मैं.
पुरुषार्थी परमार्थ हूँ मैं.
केंद्र, त्रिज्या हूँ, परिधि हूँ.
सुमन पुष्पा हूँ, सुरभि हूँ.
जलद हूँ, जल हूँ, जलज हूँ.
ग्रीष्म, पावस हूँ, शरद हूँ. 
साज, सुर, सरगम सरस हूँ.
लौह को पारस परस हूँ.
भाव जैसा तुम रखोगे
चित्र वैसा ही लखोगे. 
स्वप्न हूँ, साकार हूँ मैं.
शून्य हूँ, आकार हूँ मैं.
संकुचन-विस्तार हूँ मैं.
सृष्टि का व्यापार हूँ मैं.
चाहते हो देख पाओ.
सृष्ट में हो लीन जाओ.
रागिनी जग में गुंजाओ.
द्वेष, हिंसा भूल जाओ.
विश्व को अपना बनाओ.
स्नेह-सलिला में नहाओ..
*******

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vikram Srivastava on November 12, 2011 at 1:44pm

आदरणीय सलिल जी.....आपकी यह रचना पढ़कर स्वयं पर गर्व होता है की मैं आप के साथ एक मंच पर हूँ....एक शाश्वत प्रश्न का बहुत गहरा उत्तर....ओ बी ओ का मैं तह-ए-दिल से शुक्रिया करना चाहता हूँ जो मुझे आप गुणी जनों के बीच रहकर सीखने का महान अवसर दे रहा है......इस बेहतरीन रचना क लिए बधाई एवं धन्यवाद....:)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on November 1, 2011 at 11:22pm

प्रणाम आदरणीय आचार्य जी ! इस उत्कृष्ट कविता की रचना करके आपने हम पर उपकार किया है ! इस निमित्त आपको सादर नमन करते हुए निम्नलिखित पंक्तियाँ आपको समर्पित कर रहा हूँ !

स्वर्ग हूँ अपवर्ग हूँ मैं
आत्मा की कामना हूँ
चित्त से प्राकट्य तप से
गुप्त करता साधना हूँ
क्या बताऊँ कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.   

सादर :

Comment by sanjiv verma 'salil' on October 31, 2011 at 10:47am

आशीष जी, सौरभ जी, अरुण जी

आपने इस रचना में पैठकर उसकी गहन पड़ताल की... आभारी हूँ. इन रचनाओं को पढ़ने-समझनेवाले विरले ही होते हैं. आपकी सराहना से इस स्तर की रचनाएँ रचने के लिए प्रोत्साहन मिलाता है. धन्यवाद.

Comment by आशीष यादव on October 30, 2011 at 9:15pm

i am everything. 

agar hm bahut gahare utre tb kahi pa sakte hai us moti ko jo is rachna me hai. sabke liye hai, shart ki gahrai me utrna hoga. bahut sundar rachna. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 30, 2011 at 1:42pm
कौन हूँ मैं? का प्रश्न हर युग में मानव के लिये सूक्ष्म से लेकर स्थूल स्तर तक सदा से शीर्षकवत् रहा है. कवि ने चेतन, अवचेतन, प्राकृतिक, मानसिक, आध्यात्मिक, वायव्य, स्थूल प्रत्येक स्तर पर एक मानव इकाई के रूप में स्वयं को पाया है और मानवीय चेतनता की सार्वभौमिकता का अनुमोदन किया है. 
 
ॐ हूँ मैं, व्योम हूँ मैं. / इडा-पिंगला, सोम हूँ मैं.  में व्याप्त सुषुम्ना भाव या उसकी गहराई हो या स्वार्थमय सर्वार्थ हूँ मैं / पुरुषार्थी परमार्थ हूँ मैं.  की निज परम हितार्थ कार्मिक होने की सात्विक उद्घोषणा हो, कवि की सत्य-स्वीकृति मुखर हुई दीखती है.
वहीं, केंद्र, त्रिज्या हूँ, परिधि हूँ.  के रूप में ज्यामितीय मानकों के अनुरूप गणना कर एक मनुष्य के तौर पर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सापेक्ष अपना कोऑर्डिनेट निर्धारित करना हो, कवि ने मनुष्य की परवेसिवनेस को सार्थक रूप से स्थापित किया है.
 
उच्चभावों से पगी और गहन दर्शन को इंगित करती इस रचना का पाठ मानसिक संतुष्टि का कारण बन कर सामने आया है. आचार्य सलिलजी को इस रचना के लिये सादर साधुवाद.
Comment by Abhinav Arun on October 30, 2011 at 12:11pm
एक शाश्वत प्रश्न का उत्तर देती कविता !! अपने गठीले शिल्प और विस्तृत बिम्बों के कारण अनुपम बन पड़ी है हार्दिक साधुवाद सलिल जी !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
16 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
17 hours ago
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
17 hours ago
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
17 hours ago
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"गुण विषय को रेखांकित करते सभी सुंदर सुगढ़ दोहे हुए हैं भाई जी।हार्दिक बधाई लीजिये। ऐसों को अब क्या…"
17 hours ago
रामबली गुप्ता commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय समर भाई साहब को समर्पित बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने भाई साहब।हार्दिक बधाई लीजिये।"
17 hours ago
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आहा क्या कहने भाई जी बढ़ते संबंध विच्छेदों पर सभी दोहे सुगढ़ और सुंदर हुए हैं। बधाई लीजिये।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सादर अभिवादन।"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service