मुझे पता है कि देश में संभवतः कोई विषय ऐसा नहीं होगा, जिस पर अब तक पीएचडी ( डॉक्टर ऑफ फिलास्फी ) नहीं हुई होगी। कई विषय तो ऐसे हैं, जिसे रगडे पर रगड़े जा रहे हैं। कुछ समाज के काम आ रहे हैं तो कुछ कचरे की टोकरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। ये अलग बात है कि कुछ विषय ही इतने भाग्यशाली हैं कि उसे जो भी अपनाता है, वह बुलंदी छू लेता है। पीएचडी के लिए मुझे लगता है कि आपमें विषय चयन की काबिलियत होनी चाहिए, उसके बाद फिक्र करने की जरूरत नहीं होती। विषय तय होने के बाद सामग्रियां जहां-तहां से मिल ही जाती हैं, फिर थमा दो पीएचडी का गठरा। एक बार खुलने के बाद कब खुलेगा, इसका भले ही पता न हो। चलिए छोड़िए पीएचडी की अंदरूनी कहानी को। अब हम फोकस उस बात पर करते हैं, जिस पर अब तक किसी ने पीएचडी नहीं की है और न ही उस व्यक्ति का चयन किया गया है, जिसके नाम पर पीएचडी की जा सकती है। दरअसल, वो विषय है, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी। देश में कला, विज्ञान, अंतरिक्ष के अलावा ढेरों विषयों पर अनगिनत पीएचडी हो चुकी हैं, इसलिए अब इस फेहरिस्त में एक ऐसे विषय को शामिल किया जाना चाहिए, जो आज हर जुबान पर छाया हुआ है और देश की बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था के लिए जिम्मेदार है। यही तो हैं जो हरे-हरे, करारे नोट को काला बनाने में तूले हैं। इतना तो मैं जानता हूं कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की जमात को सरकार नहीं समझ पा रही है और उसकी सुरंग को खोजने में अक्षम व पंगु भी बन बैठी है। ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार तथा भ्रष्टाचारियों पर पीएचडी कर पाना मुश्किल है, मगर यह बात भी सही है कि पीएचडी के लिए विषय का चयन बहुत मायने रखता है। इसके लिए उन विषयों को प्राथमिकता दी जाती है, जो अनछुआ हो। ऐसे में मेरा मानना है कि ऐसा विषय फिलहाल नहीं मिलने वाला है, क्योंकि जिसके आगे सब कराह रहे हों ( भले ही भ्रष्टाचारी मौज करे और भ्रष्टाचार इतराये )। अब सवाल उठता है कि इस कठिन विषय पर पीएचडी कौन करेगा और भ्रष्टाचारियों की फेहरिस्त भी धीरे-धीरे लंबी होती जा रही है, इसलिए पहला नाम कौन सा होगा, जिस पर पीएचडी केन्द्रीत हो। भ्रष्टाचार, जिस तरह जनता के सामने इतराता है, वैसे ही पीएचडी के लिए आतुर खड़ा रहेगा, लेकिन भ्रष्टाचारी कतार में आए, तब ना। जो भी हो, अब इस विषय में पीएचडी के लिए देरी नहीं होनी चाहिए। नाम चाहे किसी का भी तय हो, किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भ्रष्टाचार करने भ्रष्टाचारियों में प्रतिस्पर्धा दिखाई जरूर देती हो, किन्तु जो नाम सबसे उपर है, वही इसका पहला हकदार बनना चाहिए। उसके बाद जैसे अन्य विषयों में ध्यान केन्द्रित किया जाता है, वैसा ही इस फण्डे पर काम किया जाए। एक पर पीएचडी होने के बाद लाइन में कई लगे हुए हैं, इसलिए विषय से भटकने का सवाल ही नहीं उठता, जैसे अन्य विषयों में हम देखते आ रहे हैं। भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के विषय पर आज जितना जाना-समझा जा सकता है, वह कम ही होगा। इसलिए अब तो हम सब को मिलकर तय करना ही होगा कि आखिर किसे कराएं पीएचडी ?
राजकुमार साहू लेखक व्यंग्य लिखते हैं। जांजगीर, छत्तीसगढ़ मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088
Comment
इस करारे व्यंग्य के माध्यम से आपने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के साथ-साथ पीएचडी की गिरती प्रतिष्ठा पर भी सम्यक सवाल उठाये हैं. बहुत अच्छा प्रयास.. .
शुभेच्छा.
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