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DR ARUN KUMAR SHASTRI
  • Male
  • Delhi ncr
  • India
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DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-99 (विषय: 'हार-जीत')
"विषय - हार जीत  शीर्षक - तु कौन  रवींद्र शहर के बड़े उद्योगपति लाला राम लाल का बेटा था । उसे हार जीत के खेल में  हमेशा जीतने की सनक सवार थी । हार को वो बहुत बड़े अपमान के तौर पे दिल में बिठा लेता था और अन्यत्र किसी न किसी बहाने से उस…"
Jun 30
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-156
"जी शुक्रिया आपका मैं ये समझ रहा था कोई तो मिला सीखने के लिए जो सीधे 5 कक्षा से क्लास शुरू करेगा मगर ऐसा हो न सका । बहरहाल जो ताकीद की है अमल करेंगे । सादर । प्रिय कर्णप्रिय कभी न मिटने वाले मित्र , धन्यवाद "
Jun 23
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-156
"शुक्रिया अमित भाई आपके नाम के पहले अक्षर समझ नहीं आए इसलिए दूसरे नाम अमित से संबोधित कर रहा हूँ । आपकी बात एक दम माकूल है मजा तो जब है जब मेरी लिखी इसी रचना को बेहर की गजल में तब्दील कर दें मुझे भी समझ आयेगा और आपका इस्तकबाल भी बुलंद हो जाएगा /…"
Jun 23
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-156
"पहली कोशिश - गलती तो होनी है ही - ब माफी ख्वाहिश पे मिरी ये क्या बबाल कर दिया हम थे गरीब लेकिन कुछ तो बहरहाल कर दिया  आदमी हो मियां आदमी सी बात किया करो  ये क्या किया हर जगह को आपने पीकदान कर दिया  सांस घुट रही है देख कर…"
Jun 23
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 146 in the group चित्र से काव्य तक
"विधा - नवगीत  शीर्षक - रसना रस से भरी  विषय - प्रदत्त चित्र आधारित   रसीले आम  आज कल सरे आम  मिल रहे ।  ओ रसिया तुम  काहे को मिलने की  जिद्द कर रहे ।  आम आम की कथा  है निराली ।  कोई…"
Jun 18
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-152
"भाई जी उम्दा पेशकश बेहतरीन साहित्यिक परिवेश आनंद आ गया - एक अबोध बालक "
Jun 10
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-152
"शीर्षक तुम अगर साथ हो विधा – नवगीत जिंदगी के सफर में तुम अगर साथ हो । तो क्या बात हो तो क्या बात हो । कोई मजबूरी नहीं कोई जिद्द भी नहीं । सिर्फ एहसास हो । मिल्कियत हो खुदा की इंसानियत के जज़्बात हों । तबियत से सभी बिंदास हो । यूँ उदासी से…"
Jun 10
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"तेज वीर साहिब वाह वाह आज कल के समाज का सच्चा आईना पेश किया कथा के माध्यम से काबिले तारीफ - "
May 31
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"प्रिय शेख साहिब आदाब , सुन्दर कथानक व दो मित्रों का  औपचारिक वार्तालाप मजा आया हम सभी के जीवन से जुड़े वक्तव्य । "
May 31
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"भाई लक्ष्मण जी सादर अभिवादन , आपके शब्द मुझ से शिक्षार्थी हेतु प्रोत्साहन , ऊर्जा का निमित्त हुए । "
May 31
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"प्रिय शेख साहिब - आदाब - आपका आभारी हूँ , आपकी समीक्षा आपके विवेक व ज्ञान अनुसार, न्यायोचित - मैं उसका सम्मान करता हूँ सादर नमन , तथोक्त हेतु कोई  आपत्ति नहीं । मुझ में  जैसी लेखन व सृजनात्मकता , क्षमता है वही लिख पाया हूँ , सादर । हाँ…"
May 30
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"दीखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर - वाली लोकोक्ति शायद ऐसे ही संदभों हेतु कही गई होगी - कुछ रचनाएँ विस्तार से नहीं उसके मौलिक भाव से चिह्नित होती व सराही जाती हैं सादर - डॉ अरुण कुमार शास्त्री "
May 30
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-98 (विषय: अवसर)
"* रानी बड़ी सयानी * मुँगस पुर , बिहार के मध्य वर्गीय परिवार की इकलौती मेधावी संतान कक्षा 12 वीं की छात्रा । सब कुछ ठीक ठाक था उसके जीवन में ।  अभी उसने फाइनल वर्ष की परीक्षा दी ही थी । रिजल्ट आने ही वाला था । एक दिन वो माँ के साथ रसोई में…"
May 30
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-151
"पहला प्यार अतुकांत कविता पहला प्यार जैसे बारिश की पहली फ़ुआर । कानों में झींगुर सी झंझानाती सखी की किलकार । तन को भिगोना मन का सुलगना धीमी धीमी अग्नि से जैसे रोटियों का सिकना टिप - टिप बूंदों की करती हो जैसे…"
May 14
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-150
""नयी फसल" फसल मेहनत से उगाई जाए यारो खाद पानी धूप देकर पकाई जाए यारो बहुत से हैं जमीं पर खरपतवार नाकारा वक़्ते वक़्तन उनपे आरी चलाई जाए यारो। आपदायें जगत में अचानक से धमक जाती हैं लगी उम्मीद की जो लगन मिटाती हैं मेहनती हांथों पे पड़े हुए…"
Apr 15
DR ARUN KUMAR SHASTRI posted a blog post

कुछ कर न सका

वो मुझसे दूर होती गई और मैं देख्ता रहा चुपचाप कुछ कर न सका दुख की सीमा मत पूंछो कितना कम्मपित था हृदय अरे मन भीषण सन्ताप से पीडित था कुछ कर न सका कुछ कर न सका हे नाथ वो मुझसे दूर होती गई और मैं देख्ता रहा चुपचाप मानव हृदय भी कैसा है कुछ सोच रहा कुछ होता है मानव हृदय भी कैसा है कुछ सोच रहा कुछ होता है बस में इसके कुछ भी तो नहीं बस पडा पडा ये रोता है वो दूर गई जाती ही रही कुछ कर न सका कुछ कर न सका हे नाथ शंकित मन से जब भी तुम कोई कार्य करोगे ढीले मन से तुम आधे अधूरे से होकर…See More
Apr 12

Profile Information

Gender
Male
City State
DELHI NCR
Native Place
DELHI
Profession
EMINENT CONSULTANT
About me
LOVE THY GOD AND HUMANITY VASUDHAIV KUTUMBKAM

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कुछ कर न सका

वो मुझसे दूर होती गई

और मैं देख्ता रहा चुपचाप

कुछ कर न सका

दुख की सीमा मत पूंछो

कितना कम्मपित था हृदय अरे

मन भीषण सन्ताप से पीडित था

कुछ कर न सका

कुछ कर न सका हे नाथ

वो मुझसे दूर होती गई

और मैं देख्ता रहा चुपचाप

मानव हृदय भी कैसा है

कुछ सोच रहा कुछ होता है

मानव हृदय भी कैसा है

कुछ सोच रहा कुछ होता है

बस में इसके कुछ भी तो नहीं

बस पडा पडा ये रोता है

वो दूर गई जाती ही रही…

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Posted on April 10, 2023 at 1:30am

प्रतिकर्ष

तेरे आकर्षण का पल पल प्रतिकर्ष सताता है

सामजिक ताना बाना मिरी उलझन बढ़ाता है //

नदिया के पास जाऊं तो शीतल हो जाऊं

साथ दो अगर तो मैं मुस्कान बन जाऊं //

आकर्षक सा छद्म आव्हान मुझे बुलाता है //

सामजिक ताना बाना मिरी उलझन बढ़ाता है //

तुमसे कहने का मैं कोई मौका न छोड़ता

बस एक इशारा मिलता तो ही तो बोलता //

ऊहा पोह के सागर में अब गोता खाता हूँ

सामजिक ताना बाना मिरी उलझन बढ़ाता है //

दर्द की बात न करूंगा दर्द अब बेमानी हुआ

चाय…

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Posted on February 2, 2021 at 4:45pm — 2 Comments

एक नज़्म - बे - क़ायदा

वक़्त मिलता है कहाँ

आज के मौसुल में

रक़ीबा दर - ब - दर

डोलने का हुनर मंद है

ये ख़ाक सार

इक अदद पेट ही है

जिसने न जाने कितनी

जिंदगियां लीली है

तुखंम उस पर कभी भरता नहीं

हर वक्त सुरसा सा

मुँह खोल के रखता है

न जाने किस कदर

इसमें ख़ज़ीली हैं।

ईंते ख़ाबां मुलम्मा कौन सा

इस पर चढ़ा होगा

दिखाई भी तो नहीं देता

मगर इक बात मुझको

इसके जानिब ये ज़रुर कहनी है।

अगरचे ये नहीं होता

बा कसम ये दुनिया नहीं होती

ये जो…

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Posted on February 2, 2021 at 4:30pm

नज़्म

बेबाक दिलबरी का आलम न पूँछिये। 

हम से मोहब्बत का बस हुनर सीखिये ।

दिल में लगी हो आग तो सेक लीजिये। 

वरना लगा के दाग यूँ सितम न कीजिये। 

तारीफ़ कीजिये या के…

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Posted on January 25, 2021 at 10:00pm — 2 Comments

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At 2:52pm on February 1, 2021, Samar kabeer said…

जनाब अरुण कुमार जी,ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका धन्यवाद ।

At 12:39pm on September 12, 2020,
प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर
said…

कृपया अपनी रचना यहाँ पोस्ट करें:

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/119-1?xg_source=activity&xg_raw_resources=1

 
 
 

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