आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार अठहत्तरवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
20 अक्टूबर 2017 दिन शुक्रवार से 21 अक्टूबर 2017 दिन शनिवार तक
इस बार के छंद हैं -सरसी छंद और कामरूप छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
साथ ही, रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो छन्द बदल दें.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
कामरूप छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक...
सरसी छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
[प्रस्तुत चित्र अंतर्जाल से]
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 अक्टूबर 2017 दिन शुक्रवार से 21 अक्टूबर 2017 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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बहुत बढ़िया , अति सुन्दर .
आदरणीय भाई तस्दीक एहमद खान साहब सादर, प्रदत्त चित्र पर बहुत सुंदर भाव लिए सरसी छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. कामरूप छन्द पर भी अच्छा प्रयास हुआ है आपका. एक बार पुनः कामरूप छंद के विषय में दी गई जानकारी पढ़ लें तो रही कमियाँ भी दूर हो जायेंगी. इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.
गीत ( कामरूप छंद )
गंधमान वात पुलकित गात आभा का प्रपात
तारक है फूल विभा दकूल जागती है रात
संकल्प अधीन दिखती लींन
व्याप्त है उजास
एक शांत कक्ष बाला दक्ष
कोई नही पास
ध्वान्त छिपा दूर फैला नूर सब लोक अवदात
गंधमान वात -----------------------------------
स्वर्ण-कान्त केश सुन्दर वेश
तर्जनी गतिमान
रूप एक सृष्टि केन्द्रित दृष्टि
सधा है अवधान
मावस की रात शीतल-गात महकता जलजात
गंधमान वात -----------------------------------
है प्रकाश पर्व शांत सगर्व
कम्प्यूटर समक्ष
राजती है बाल उन्नत भाल
लक्ष्य पर है अक्ष
पर्व का प्रभाव मन में भाव उमड़े नवजात
गंधमान वात -----------------------------------
दीपक का चित्र रश्मि पवित्र
मानीटर जीवंत
अंकित है गान देकर ध्यान
पढ़ती आदि-अंत
यह कैसा ढंग दबी उमंग बनती नहीं बात
गंधमान वात -----------------------------------
धूम न पटाका व्यग्र राका
करती है पुकार
दीपक जलाओ मुस्कराओ
जागें सभी द्वार
बाहर है रोर विभा हिलोर ज्योति-कण बरसात
गंधमान वात -----------------------------------
गीत (सरसी छंद )
दीपों की है छायी माला गमक रही है रात
द्वार-द्वार पर उत्सव-मेला तारों की बारात
यहाँ कक्ष में बैठी बाला
शायद है कुछ भिन्न
अथवा वह फिर किसी बात से
हुयी अचानक खिन्न
बाहर से है शांत वेश पर भीतर झंझावात
दीपों की है----------------------------------
ज्योति उजास सुखद है लेकिन
दुर्वह होता शोर
धूम पटाके की घर-बाहर
फ़ैली चारो ओर
स्वतःफूर्त आयी स्वकक्ष में यह बाला अवदात
दीपों की है----------------------------------
प्राप्त कर रही कम्प्यूटर पर
दीप-पर्व का ज्ञान
लंका जय कर कैसे लौटे
रामचंद्र भगवान
कैसे सजी अवध की नगरी कैसे पुलकित गात
दीपों की है----------------------------------
मानीटर पर दीख रहा है
ज्वलित दीप का चित्र
सोच रही यह परम्परा भी
है सर्वथा विचित्र
मर्म छिपा क्या ज्योतिपर्व में क्या अन्तर्हित बात ?
दीपों की है--------------------------------------
मोह जाड्य अज्ञान मिटाता
आया सदा प्रकाश
सुख संपत्ति ज्ञान दे करता
अंधकार का नाश
इसीलिये मावस में होती दीप-रश्मि बरसात
दीपों की है--------------------------------------
(मौलिक / अप्रकाशित )
सादर अभिनन्दन , आभार .
आदरणीय , मैं जानबूझकर क्लिष्टता नहीं करता . सही शब्द चयन पर ध्यान अवश्य रहता है . माँ जैसा लिखाती है लिख जाता है, सादर .
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