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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-88

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 88वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मुज़फ्फर हनफी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो "

22 22 22 22 22 22 22 2

फेलुन   फेलुन   फेलुन   फेलुन     फेलुन   फेलुन  फेलुन  फा 

(बह्र: मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ)

रदीफ़ :- तो
काफिया :- आए (जाए, चलाए, आए, मिटाए, फ़रमाए आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अक्तूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 अक्टूबर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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Replies to This Discussion

धन्यवाद आदरणीय आरिफ़ सा० हौसला अफ़जाई के लिए।

आ. बलराम जी 
.
क्या कीजे गर याद में उसकी आँख अगर भर आए तो..इस मिसरे में गर और अगर दोनों खलल दाल रहे हैं..
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

धन्यवाद आदरणीय नीलेश जी।
टंकन त्रुटि के लिए मुआफ़ कीजियेगा।
"क्या कीजे गर याद में उसकी आँख मेरी भर आए तो"
सादर।

बलराम जी , आपका प्रयास बढ़िया है .

धन्यवाद, आदरणीय गोपाल सर।
आडरणीय बलराम जी,उम्दा गजल प्रयास!हार्दिक बधाई
बढ़िया कथ्य आदरणीय, बधाई।

आदरणीय बलराम जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

आपकी ग़ज़ल बहरे मीर के हिसाब से ठीक है. लेकिन तरही के लिए दी गयी बहर 'मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ' के हिसाब से ये मिसरे ठीक नहीं हैं :

'कब तक अहल-ए-वतन सहे कोई आवाज़ उठाए तो'

'अभी न कोई हारा है न जीता है रण वाकी है'

'अभी तो कांटे की बोटी में अपना जी ललचाती है'

'कहीं सियासत में सुल्तानों की रानी घिर जाए तो'

सादर

जनाब बलराम साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ | बह्र में कई जगह चूक हुई है
अजय साहिब के मशवरे पर गौर कीजिए

आ बलराम धाकर जी, उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें 
 

अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आद० बलराम जी 

ना ना करते करते दिल ने दिल से नैन लड़ाए तो
मैं भी राज़ ए दिल कह दूँ पर वो थोड़ा शरमाए तो।

मुझ पर भी फिर लाज़िम होगा नफ़रत को मिसमार करूँ
प्यार महब्बत अम्न ओ अमाँ के उसने फूल खिलाए तो।

हसरत पाले बैठे हो तुम दिल में जिन से मिलने की
और किसी दिन तुम से मिलने वो ख़ुद ही आ जाए तो।

हम भी हँस कर बोलेंगे ये इतना मुश्किल थोड़ी है
वो भी पिछली बात भुला कर थोड़ा सा मुस्काए तो।

सरकारी ख़ैरात बटेगी फिर उसके घर वालों को
दो रोटी पाने की ख़ातिर कोई जान गँवाए तो।

जा़हिर में तो उसके जैसा कोई भी ग़म ख़्वार नहीं
पहले ये बतला दो उसने छुप कर तीर चलाए तो।

अच्छे दिन भी आ सकते हैं शर्त है लेकिन बस इतनी अमली जामा भी जुम्लों को वो पहले पहनाए तो।

हो सकते हैं दूर अंधेरे नफ़रत के इस दुनिया से
आगे बढ़ कर उल्फ़त का फिर कोई दीप जलाए तो।

आज सहर ये दुनिया तेरी मजबूरी पर हँसती है
कल ये मौका इस दुनिया के हिस्से में आ जाए तो।

मौलिक/अप्रकाशित

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