For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-86

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 86वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अख्तर शीरानी  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ "

2122    2122   2122   212

फाइलातुन  फाइलातुन  फाइलातुन  फाइलुन

(बह्र:  बह्रे रमल मुसम्मन् महजूफ  )

रदीफ़ :- फिर कहाँ 
काफिया :- आनी (जिंदगानी, जवानी, निशानी, आनी, जानी आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 अगस्त दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11855

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आद0 रवि जी सादर प्रणाम, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। मतला भी खूबसूरत, गिरह भी अच्छा लगा। जो शेर मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया वह
देख वाइज फिर तुझे शायद नहीं मौका मिले,
आरिज़ों से ज़ुल्फ़ की ये छेड़खानी फिर कहाँ।

उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद के साथ मुबारकबाद क़बूलें। सादर
आदरणीय सुरेंद्र जी ग़ज़ल की सराहना और हमारी पसंद के शेर को इंगित करने के लिए हार्दिक आभार
मुहतरम जनाब रवि साहिब ,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आदरणीय तस्दीक साहब आप मुत्मइन हुए कोशिश कामयाब हुई । शुक्रिया आदरणीय

आ. रवि सर,,
बहुत उम्दा ग़ज़ल आपने  पेश की ...
गिरह भी खूब लगी है   और वाइज़ को नसीहत भी बेहतर है (आजकल वाइज़ ज़्यादा छेड़खानी कर रहे है..एक तो कल ही धराया है :D; मुझे तो लगता है कि हम ग़ज़ल वालों ने ही वाइजों को बिगाड़ दिया है )
ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

सच कहा भाई,हम शाइरों ने ही वाइज़ो को बहुत भाव देकर बिगाड़ा है, हा हा हा..
हा हा हा बहुत खूब आदरणीय नीलेश जी आपकी गुदगुदाती टिप्पणी से बहुत खुशी हुई । बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल की सराहना के लिए

बहुत प्यारी ग़ज़ल कही आदरणीय रवि सर ,शेर दर शेर मुबारकबाद कूबूल करें सादर ।

आदरणीया सुनंदा जी ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आ.भाई रवि जी इस बेहतरीन गजल के लिए कोटि कोटि बधाई ।

आज है जो  इस लहू में यह  रवानी फिर कहाँ

जाँ  फ़िदा कर दे वतन पर यह जवानी फिर कहाँ

 

ले अदावत की कलम जब सामने बैठा अदू

इक मुहब्बत की ग़ज़ल पर तर्जुमानी फिर कहाँ

 

बैर की आतिशकदा में गर समंदर जल गया

दोस्ती की किश्तियाँ ये  आनी जानी फिर कहाँ

 

सामने हमराज बनकर  वार पीछे से करे

लाश कंधों पे उखुव्वत की उठानी फिर कहाँ

 

वादियों को खंडहरों की लाश में तब्दील कर

ढूँढयेगा प्यार की सच्ची निशानी फिर कहाँ   

 

पत्थरों के शहर में सब झूठ के किरदार हैं

कौन लिक्खे गुड्डे गुड़ियों पर कहानी फिर कहाँ

 

जल  गए हैं जो रकाबत की तपिश की धूप में     

उन गुलों में पाक निकहत ज़ाफ़रानी फिर कहाँ

  

गर खुदा की उस अदालत में कभी पकड़े गए

सोचिये तो फ़लसफ़ा वो हकबयानी फिर कहाँ

 

काम पूरे कर सभी जो हैं अधूरे ‘राज’ तू

ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ  

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

आदरणीया राजेश दीदी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें दूसरा शेर बहुत कुछ कह रहा है ।
बैर की आतिशकदा या बैर के हमें संदेह है कुछ ।
जल गए है ....7 वा शेर बहुत अच्छा लगा ।
खुदा की उस अदालत में उस शब्द गैर जरूरी लगा दीदी खुदा की तो एक ही अदालत है । निवेदन मात्र है । गिरह भी अच्छी । इस उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई । सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह, हर शेर क्या ही कमाल का कथ्य शाब्दिक कर रहा है, आदरणीय नीलेश भाई. ंअतले ने ही मन मोह…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
12 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service