परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 83वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ख़बर नहीं है कि सूरज किधर से निकला था"
मुफ़ाइलुन फइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन
1212 1122 1212 22
नोट:अंतिम रुक्न पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है , जैसा की अरूज़ के नियमानुसार हम अंतिम रुक्न में एक मात्रा बढ़ा सकते हैं और फेलुन को फइलुन भी कर सकते हैं तो इस प्रकार अंतिम रुक्न चार तरीकों का हो सकता है
1121/221/22/112
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है मजाज़ सुल्तानपुरी जी, दाद के साथ बधाई भी स्वीकार करें. दूसरे और तीसरे शेअर में तकाबुल-ए-रदीफैन तथा तीसरे में ऐब-ए-तनाफुर पर नज्र-ए-सानी दरकार है.
आदरणीय मजाज साहब, बेहतरीन गजल से मंच को नवाजने के लिए हार्दिक बधाई ।
आदरणीय मजाज़ भाई , बेहतरीन गज़ल के लिये शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल फरमाइये ।
आदरणीय मजाज़ साहब कमाल की गजल कही है आपने हर शेर उम्दा, दिली बधाई कुबूल करें
वाह आदरणीय मजाज़ सुल्तानपुरी जी ,, बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने,, सभी अशआर पसंद आए
अच्छी ग़ज़ल है साहब ,मुबारकबाद
अच्छी ग़ज़ल हुई है मोहतरम मज़ाज साहिब बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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