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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-67 (विषय: तलाश)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-67 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-67
विषय: "तलाश"
अवधि : 30-10-2020 से 31-10-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आभार आ. बबिता जी।

बेहतरीन प्रतीकात्मक लघुकथा मनन सर जी.।

आभार आ. कनक जी।

तुष्टीकरण/ आरक्षण पर तीखा तंज करती अच्छी रचना। हार्दिक बधाई

सादर नमस्कार। वाह। इस गोष्ठी की सबसे अलग बेहतरीन लघुकथा। संकेतों में बेहद तंजदार। हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब।

  इस भाग को भी इंवर्टिड कौमाज़ में रखते हुए एक वाक्यांश जोड़ना था : //वे पहले तो हमें दाना देते रहे।फिर धीरे धीरे हमारे पर कुतरते रहे।हुआ ऐसा कि पर होने पर भी हम अपना दाना खुद चुगने की जहमत से दूर होते गए।आज भूखों मरने की नौबत आ गई।// ... पश्चाताप के सुर गूंज उठे!   ऐसे शीर्षक दोहराये जा चुके हैं। कोई नया व बेहतर भी सोचिएगा। 

सुझाव - /पंख वाले!/, /बहलियों से न बहलिये!/, /बहलाते बहलिये/, /भाग के लिए भाग!/....

अनउगे पंख
----------------

वह क्या करे....
न कुछ सोच पा रही थी..
न कुछ समझ पा रही थी..
इतना बड़ा सम्मान मिलना कुछ कम बड़ी बात न थी। कल आए विश्व हिंदी लेखन संघ के निमन्त्रण पत्र पर उसका विदेश में होने वाले समारोह में प्रथम पुरस्कार ग्रहण करने का आवेदन था।
पर वह तो कभी अकेली विदेश तो क्या घूमने भी शहर से बाहर नहीं गई थी। घर संसार और पति ने कभी बाहर जाने ही नहीं दिया था। घर की चारदीवारी के अन्दर अपने लिखने के शौक ने आज उसे जीवन का इतना बड़ा अवसर प्रदान किया था। यद्यपि पति की मृत्यु को दो साल हो गए थे पर उम्र के इस पड़ाव पर अकेले विदेश जाना...? पर जीवन का इतना महत्वपूर्ण अवसर..?
नहीं.. नहीं.. उससे नहीं होगा..।
उसने चारों तरफ हाथ पाँव फैलाए.. पिंजरे की सलाखें अब नहीं थी।
पर उड़ने के लिए पंख..?
पर पंख तो कटे हुए थे और उन्हें फिर से उगने का मौका ही नहीं मिला था।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

यह लघुकथा उस महिला के बारे में है जिसने घर की चारदीवारी को ही अपनी सीमारेखा मान लिया है।
अपनी जीवन संध्या में जब उसे अपनी सीमा रेखा लांघने का मौका मिलता है तब उसे यह महसूस होता है कि वह तो चलना ही भूल चुकी है। यह कमोबेश उसी तरह है, जैसे हमेशा रस्सी से बंधा हुआ जानवर बिना रस्सी के भी मालिक द्वारा किये गए रस्सी बांधने के अभिनय मात्र से ही खुद को बंधा हुआ मान लेता है। कथ्य बढ़िया है। शिल्प में जरा सी सुधार की गुंजाइश दिख रही है। इतने बड़े असमंजस को कम शब्दों में प्रभावी तरीके से समेटना भी लेखिका के हुनर की मिसाल है। सकारात्मक अंत चाहने वालों को यह लघुकथा निराश कर सकती है।

अनिल जी हार्दिक आभार आपका.. कथा के मर्म को समझ कर सकारात्मक टिप्पणी हेतु...।

हार्दिक बधाई आदरणीय कनक हरलालका जी। वाह बेहतरीन लघुकथा। पुरुष शासित समाज में नारी जाति को सदैव दबा कर रखने की नीति को उजागर करती लघुकथा। साथ ही इस आचरण से नारी जाति के विकास को अवरुद्ध करती परिपाटी पर बढ़िया कटाक्ष। नारी जाति के शोषण पर विचारोत्तेजक रचना।

बहुत कटु सत्य।बहुत-बहुत बधाई, कनक जी।

स्वयं को तलाशती नारी पर अच्छी रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक जी

आदाब। महिला विमर्श की एक बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक हरलाल्का जी।शैली भी अच्छी है। लेकिन रचना को थोड़ा और समय चाहिए।

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