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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-55

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 55 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह  मशहूर शायर और हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े गीतकार जनाब मज़रूह सुल्तानपुरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा ए- तरह 

 

"न जाने कब हो सहर कौन इंतिज़ार करे "

1212 1122 1212 112/22

मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन/फेलुन

(बह्र: बह्र मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- करे
काफिया :- आर (इन्तिज़ार, बहार, निसार, खुमार  आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 30 जनवरी दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 31 जनवरी  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 जनवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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Replies to This Discussion

समय सापेक्ष तरही गजल रचना कर आपने लेखकीय धर्म बखूबी निभाया है आदरणीय । उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

सभी अशआर बढ़िया हुए है, मगर इस शेअर ने दिल जीत लिया आ० अरुण निगम भाई जी :

गुलों पे  वक्त  पड़ा , बागबां  हुये  गायब
चमन गवाह,हिफाजत का काम खार करे | 

Aadarniya arun kumar nigam ji...अमर शहीदों को समर्पित आपकी ग़ज़ल बहुत सुंदर हुई है। वाह वाह वाह ..!! 5 ही शे'र हुए हैं लेकिन सभी बहुत अच्छे हैं।

आदरणीय अरुण कुमार निगम जी क्या बात है ....

/गुलों पे  वक्त  पड़ा , बागबां  हुये  गायब

चमन गवाह,हिफाजत का काम खार करे/.... शानदार ,बहुत बहुत बधाई. 

गुलों पे वक्त पड़ा , बागबां हुये गायब
चमन गवाह,हिफाजत का काम खार करे |
वाह क्या बात है आदरणीय अरुण सर बेहतरीन, गिरह भी ज़बरदस्त लगाई है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

बहुत सुन्दर ..आदरणीय अरुण जी शहीदों को समर्पित इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर ढेर सारी दाद कबूल कीजिये|

बहुत लाजबाब गजल, आदरणीय अरुण जी. हर एक शेर दिल को छू गया, दिल से बधाई आपको ,सर

बहुत खूब अरुण जी। एक से बढ़कर एक शेर और खूबसूरत गिरह। 

वाह ... मुरस्सा ग़ज़ल हुई है ...

आ0 भाई अरुण जी , बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है . सामयिक भी सुन्दर भी हार्दिक बधाई ।

उम्दा गजल  भावपूर्ण  आश;आर रचे  है श्री अरुण कुमार निगम जी -

सभी तो  पूत मगर  वह सपूत है सच्चा  

कफ़न पहन के चले, मौत अंगीकार करे |----- बहुत खूब 

किसी दिये को बना  आफताब तू अपना

न जाने कब हो सहर  कौन इंतिज़ार करे |--   वाह ! लाजवाब  | हार्दिक  बधाई  

     मतला बहुत अच्छा लगा, बाकी इस विषय के बारे कहना - दिल को छू गया  

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