For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-54 (विषय: स्त्री)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-54 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:  
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-54
विषय: स्त्री
अवधि : 29-09-2019  से 30-9-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 5616

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्त्री आदतन ही देखभालपसंद होती है,क्योंकि ये उसके संस्कार है।पुरूष घर में भी हो तो वह ठंडा क्यों खाये पर पुरूष को परवाह कम होती है।कथा में आपने उम्दा विषय पर प्रकाश डाला है ।बधाई कथा के लिये आद० प्रतिभा पांडे जी ।

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी।स्त्री पुरुष की एक दूसरे पर निर्भर रहने की आदत और पारस्परिक प्रेम को दर्शाती सुंदर लघुकथा।

हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी

हार्दिक आभार आदरणीया नीता जी

    आदरनीया प्रतिभा जी , आप जी ने बहुत से  मर्दों  कि दुखती नब्ज़ पर हाथ रख , कमाल कि लघुकथा के लिए बधाई 

हार्दिक आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी

प्रेयसी(विषय-स्त्री)
----
प्रेयसी रसोद्वेलित होगी,ऐसा पुरुष को यदा-कदा अहसास होता। ऐसा प्रायः दैहिक साहचर्य -क्रिया के शिखर पर होता था।वह खुद को निहाल महसूस करता। समय गुजरता गया।आग जलती,बुझती।फिर जल जाती।वह सुलगता।उसे बुझाने की लालसा बलवती होती जाती।और वह धरती अपने आकाश से टपकती ज्वलित बूंदों के प्रहार से आहत होती।ओह और हाय का यह सिलसिला अनवरत चलता रहा।

फिर धीरे-धीरे अंग-संघर्ष कृत्योपरांत की मलिनता प्रेयसी ने उजागर की।उसका तथ्य था कि वह कृत्य भला ग्राह्य क्यों हो,जिसका अवसान मालिन्य जनक है। खैर संतानोत्पत्ति की हद तक उसे मान्यता देने में उसे कोई ज्यादा आपत्ति नहीं थी।
फिर कुछ अर्से बाद स्पष्ट हुआ कि रति-क्रिया तो उसके लिए नितांत पीड़ादायी है।वह तो अपने प्रियतम की खातिर सब कुछ झेलती जाती है।हाँ,उमगते उद्गार से उमंगों का पारावार पा लेने की उत्कंठा कभी-कभार जरूर मुखर हो जाया करती थी।अब नहीं होती।उम्र भी तो कोई चीज है।
अब प्रियतम के आहत महसूस करने की बारी है।वह सोचता है कि सिर्फ मेरे लिए उसने काफी कष्ट झेल लिये।मैंने किया ही क्या उसके लिए? बस उसके मनोभावों की आड़ में उसके जिस्म से खेला हूँ अबतक।पर अब ऐसा नहीं होगा। प्रण है मेरा।और अरमानों के कुलाँचे भरने पर वह मुँह फिराकर सोने की कोशिश करता है, गुड नाईट कहकर।जबाब में भी गुड नाईट मिलती है।पर जब वह ऊँघता होता है,तो छोटा तकिया या छोटी तौलिया मुँह पर हल्के से पड़ जाते।स्नेह-सूचना का सन्दर्भ होता यह सब।फिर सब कुछ यथावत चलता रहता है।अनुरक्ति-विरक्ति मनोभावों की अनुगामिनी हैं।वे सदा बरक़रार रहती हैं।हाँ,हर चीज के मुखर होने का अपना समय होता है।
पार्क में बैठा प्रियतम यही सोच रहा था कि मोबाइल घनघना उठा।
'कहाँ हो?', प्रेयसी की आवाज आई।
'बस आ रहा हूँ।पार्क में था।'
'रात की बातें भुला देना।वह वक्त का झोंका था,और कुछ नहीं।'
वह बोला कुछ नहीं।घर की ओर चल पड़ा।
"मौलिक वअप्रकाशित"

आदाब। एक बार पुनः ज़ोख़िम वाली अभिव्यक्ति के साथ शिल्पबद्ध उम्दा किंतु बहस योग्य रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।

कॉमन आंग्ल शब्दों के बजाय उनके समकक्ष भावार्थ वाले कठिन हिंदी शब्द रोचक प्रवाह को गांभीर्य ही देते हैं। पात्रों के आत्म-मंथन रूपी विवरण के बजाय इंवर्टेड कौमाज़ में अंतर्मन से संवाद रूप में वही बात कहने से शायद रचना अधिक असरदार व रुचिकर हो जाये! प्रेयसी/प्रियतम का प्रयोग पति/पत्नी के लिए ही है न या लिव-इन-संबंधों के लिए भी?

आभार आदरणीय उस्मानीजी! आपका बहुत बहुत शुक्रिया।लघुकथा को दिया गया आपका मान सराहनीय है।हाँ, यह पति-पत्नी पर ही केंद्रित है।

आदरणीय मनन जी  लघुकथा गोष्ठी 52 विषय अस्तित्व में हम ये कथा पढ चुके हैं। देखियेगा।

  1. अच्छा आदरणीया,देखना पड़ेगा।आपका आभार,याद दिलाने के लिए।दूसरी लघुकथा आएगी।

 

आदरणीय मनन जी नमस्कार सुंदर लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें, बात समझ आती है पर गहरे शब्द से नेटवर्क छोड़ पकड़ करता है,इसलिए ज़्यादा प्रतिक्रिया नही दे पाता सादर। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service