आदरणीय साथिओ,
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जनाब कनक हरलालका जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
गलत फरमान क्यों माना जाय। बढिया कथा आदरणीया कनक जी। हार्दिक बधाई। प्रस्तुतीकरण मे थोड़ी कसावट से कथा और प्रभावशाली बनती
इस बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको ।
मुहतरमा कनक साहिबा, परिवारिक रिश्तों को दर्शाती सुन्दर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई आद. कनक जी
रिश्तों में पङती दरार पर बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया कनक दी।
लघुकथा— नसीहत
थाइराइड से मोटी होती हुई बेटी को समझाते हुए मम्मी ने कहा, '' तू मेरी बात मान लें. तू रोज घुमने जाया कर. तेरे हाथपैर व माथा दुखना बंद हो जाएगा. मगर, तू हमारी सलाह कहां मानती है ?'' मां ने नाराजगी व्यक्त की.
'' वाह मम्मी ! आप ऐसा मत करा करो. आप तो हमेशा मुझे जलील करती रहती है.''
'' अरे ! मैं तूझे जलील कर रही हूं,'' मम्मी ने चिढ़ कर कहा, '' तेरे भले के लिए कह रही हूं. इस से तेरे हाथपैर व माथा दुखना बंद हो जाएगा.''
'' तब तो तू भी इस के साथ घुमने जाया कर,'' बहुत देर से चुपचाप पत्नी के बात सुन रहे पति ने कहा तो पत्नी चिढ़ कर बोली, '' आप तो मेरे पीछे ही पड़े रहते हैं. आप को क्या पता है कि मैं नौकरी और घर का काम कैसे करती हूं. यह सब करकर के थक कर चूर हो जाती हूं. और आप है कि मेरी जान लेना चाहते हैं.''
'' और मम्मी आप, मेरी जान लेना चाहती है,'' जैसे ही बेटी ने मम्मी से कहा तो मम्मी झट से अपने पति से बोल पड़ी, '' आप तो जन्मजात मेरे दुश्मन है....... ''
बेटी कब चुप रहती. उस ने कहा, '' और मम्मी आप, मेरी दुश्मन है. मेरे ही पीछे पड़ी रहती है. आप को मेरे अलावा कोई कामधंधा नहीं है क्या ?''
यह सुन कर, पत्नी पराजय भाव से पति की ओर देख कर गुर्रा रही थी. पति खिसियाते हुए बोले, '' मैं तो तेरे भले के लिए बोल रहा था. तेरे हाथपैर दुखते हैं वह घुमने से ठीक हो जाएंगे. कारण, घुमने से मांसपेशियों में लचक आती है. यही बात तो तू इसे समझा रही थी.''
इस पर पत्नी चिढ़ पड़ी, '' आप अपनी नसीहत अपने पास ही रखिए.'' इस पर पति के मुंह से अचानक निकल गया,'' आप खावे काकड़ी, दूसरे को दैवे आकड़ी,'' और वे विजयभाव से मुस्करा दिए.
'' क्या !'' कहते हुए पत्नी की आंखें लाल हो गई .
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(मौलिक और अप्रकाशित)
आदाब। परिवारों में आज यही हालात हैं । आत्मावलोकन और आत्म-सुधार के बजाए एक-दूसरे को नसीहतें देते हुए परिलक्षित वातावरण में पिसते बच्चों की पीड़ायें। बढ़िया मुद्दा उठाया है आपने। चूंकि घर-घर की कहानी है, यथार्थ है, विसंगति है, सरल व सहज रचना पाठक को प्रभावित करती है। हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब।
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आपकी हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, वाली कहावत को ही चरित्रार्थ करती है रचना, कुछ-कुछ व्यंग्यात्मक पुट लिए इस रचना की प्रस्तुति बढिया हुयी है भाई जी. मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई ओम प्रकाश जी.
आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी आपकी प्रतिक्रिया मेरी अमूल्य धरोहर है हार्दिक आभार प्रतिक्रिया के लिए
कथनी और करनी पर व्यंग्य करती बढ़िया लघुकथा है आदरणीय ओमप्रकाश जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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