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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-31 (विषय: फ़रिश्ते)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 30 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-31
विषय: "फ़रिश्ते"
अवधि : 30-10-2017 से 31-10-2017 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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मुह्तरमा जानकी वाही साहिबा , प्रदत्त विषय पर बहुत ही सुंदर लघुकथा
हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ

बहुत बढ़ीया प्रैजेन्‍टेशन व सार्थक संदेश के साथ विषय को परिभाषित करने का शानदार प्रयास । हार्दिक शुभकामनाएं ।

जानकी जी भी इस बार "दागो और भागो" की शिकार गईं हैं शायद...

मेरे विचार से बहुत से साथी मोबाइल/नेटवर्क या साईट ओपन संबंधित समस्या से परेशान रहते हैं आदरणीय सर जी।

आसान राह (फ़रिश्ते )

केंसर हॉस्पिटल के वार्ड नम्बर १७ जिसमे आठ बच्चे जिन्दगी और मौत  की जंग लड़ रहे थे के  बेड न० ३ के पेशेंट का सामान उठाने के लिए जैसे ही डॉ० सैनी ने  वार्ड  ब्वाय को कहा तो हमेशा की तरह बच्चों ने तीर की तरह चुभता हुआ  सवाल उछाल दिया-

  “आरव कहाँ है ? कल रात से उसे वापस लेकर क्यूँ नहीं आये ”  बच्चों से नजर बचाते हुए  डॉ० सैनी  का मुस्कुराते हुए वही पुराना जबाब “उसके मातापिता घर ले गए वो ठीक हो गया था न” .

“ झूठ बोलते हो आप डॉक्टर अंकल,  हमें सच पता चल गया है सब बच्चों ने एक सुर में कहा . आज सुबह ही आरव ने हमको जगाकर बताया कि वो फ़रिश्ता बन गया  है जैसा कि  अंकल आप ही  हमें हमेशा कहते थे जो बच्चे  हँस कर  दर्द सहन करते हैं रोते नहीं वो अच्छे बच्चे फ़रिश्ते बन जाते हैं अब आरव भी फ़रिश्ता लोक में चला गया है  वहां उसे न कोई इंजेक्शन लेना पड़ता है  न ही कड़वी दवाई पीनी  पड़ती न ही कोई दर्द होता है वो बहुत मजे से है अब से हम भी उसकी तरह खुश रहेंगे वो  धीरे धीरे हमें भी वहाँ बुला लेगा हमसे प्रोमिस करके गया है”|

“लेकिन वो तो कल रात ही” ......उस वार्डब्वाय की बात पूरी होने से पहले ही डॉ०  सैनी उसको बाहर खींच कर ले गया.  

मौलिक एवं अप्रकाशित         

 

उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़, आरव भी फरिश्ता लोक में चला गया है, बहुत सुंदर दी ,बच्चो का दिल कितना कोमल होता है, उनको भी एहसास हो जाता है, वे अपने ही तरीके से किसी चीज को ले लेते है, यहाँ आरव की मृत्यु हो चुकी है पर उन बच्चो को दिखाई दिया है वह| बहुत सुंदर दी | हार्दिक बधाई|

प्रिय कल्पना जी आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ .

आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन और लाजवाब लघुकथा । बच्चे भोले भी होते हैं और सच्चाई को बहुत ज़ल्दी भाँप भी जाते हैं । कथानक की संक्षिप्तता की गरिमा को आपने बनाए रखा यह अच्छा किया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ .

अनुभव और परिवेश बच्चों को सच की अनुभूति करा देता है। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी। माहौल का व बच्चों के साथ डाक्टर के आत्मीय हो चुके रिश्ते का चित्रण करने के लिए इस सारगर्भित रचना में वार्डव बेड नम्बर और डॉक्टर का नाम देना यहां उचित लग रहा है। अंतिम लम्बे संवाद को किसी का लघु प्रवाहमय संवाद जोड़ कर दो टुकड़ों में किया जा सकता है क्या? अंत में /ले गया/ को /ले गये/ किया जा सकता है। शीर्षक कोई अन्य बेहतर भी हो सकता है।

आद० उस्मानी जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ .

इसका शीर्षक बहुत सोच विचार के बाद रक्खा आदरणीय --डॉ० के साथ साथ आरव् उन बच्चों की फ़रिश्ते बनने की राह आसान कर देते हैं |  

जी। अब स्पष्ट हो गया शीर्षक। बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी।

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