आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आद० सतविन्द्र भैय्या .
बहुत बहुत आभार प्रिय प्रतिभा जी |इस बार आयोजन में ठीक से हिस्सा नहीं ले पाई अब भी थोड़ा सा वक़्त मुश्किल से मिला है |
अच्छी लघुकथा है, इस समय खुल कर बात कहना संभव नहीं है अत: बधाई स्वीकारें आ० राजेश कुमारी जी.
यह रचना आपकी पहली पोस्ट में लगा दी गई है.
पलटन बाज़ार (हास्य)
रामचन्दर की सब उम्मीदों पर पानी फिर गया जब अपनी हलवाई की दुकान के ठीक दूसरी तरफ एक छोटी से जगह में चाय की दुकान खोलने का सपना धराशाई हो गया जैसे ही उसने उस जगह पर बोर्ड लगा देखा जिस पर लिखा था ‘जुम्मन कसाई मीट वाला’ |
हे भगवान् ये ही दिन दिखाने थे कह कर माथा पीट लिया राम चंदर ने|
उसके बाद धीरे-धीरे जुम्मन की दुकान के आगे मुर्गियों के पिंजरे भी रखे गए
रेडीमेड गारमेंट्स की तरह बकरे भी लटका दिए गए | मक्खियाँ भी दावत को आने लगी |
सुबह सुबह रामचंदर दुकान में अगरबत्ती घुमाता तथा मन्त्र पढ़ता दूसरी तरफ जुम्मन खटके( मीत काटने वाला बड़ा छुरा ) की धार तेज करता तथा गीत गुनगुनाता | रामचंदर जैसे ही जलेबी तलता उधर जुम्मन ख़ट-ख़ट करके मीट काटता ये सब देखकर रामचंदर की आँखों में खून उतर आता|
सफाई को लेकर दोनों में अक्सर जुबानों की तलवारें चलने लगी पूरे मार्केट में उन दोनों की चर्चा मिर्च मसालों के साथ पेश की जाने लगी|
जुम्मन की दुकान से आने वाले ग्राहक को राम चंदर खड़ा भी नहीं होने देता था |
एक बार तो नौबत हाथापाई तक आ गई जब जुम्मन की मुर्गियां पिंजरे से भाग निकली जुम्मन ने कहा की पिंजरा रामचंदर ने खोला सच्चाई क्या थी राम जाने किन्तु मुर्गियों का कुछ सैर सपाटा तो हो ही गया था|
दोनों दिन में दस बार एक दूसरे को घूर न लें तब तक मन नहीं भरता था|
जैसे तैसे दिन गुजर रहे थे शहर में अन्य स्थानों पर तो अतिक्रमण रोक अभियान चल ही रहा था कि आज सुबह
अचानक पलटन बाज़ार में भी कुछ दुकानों पर नोटिस चिपक गया रामचंदर और जुम्मन की दुकानें भी चपेट में आ गई|
ऐसा पहला दिन था जब दोनों एक दूसरे को घूरे नहीं बल्कि अपने अपने नोटिस को देख कर सर पकड़ के बैठ गए|
आस पास के लोग मजे भी ले रहे थे कुछ सहानुभूति भी जता रहे थे|
जुम्मन ने सब लोगों को इकट्ठा होकर विरोध करने के लिए उकसाया रामचंदर को भी बुलाया अन्य दुकानदार भी साथ हो लिए किन्तु हैरत की बात थी कि सबसे आगे रामचन्द्र और जुम्मन हाथ पकड़ कर नारे लगाते हुए चल रहे थे|
इसी बीच जुम्मन ने पूछा “जनाब रामचंदर साहब यदि दुकान हाथ से निकल गई तो आप अपनी दुकान कहाँ खोलने का इरादा रखते हैं” ???
सुनते ही रामचंदर का चेहरा तमतमा गया बाकि सब लोग ठहाका मार कर हँसने लगे|
-----मौलिक एवं अप्रकाशित
इस आयोजन को सफल एवं यादगारी बनाने हेतु सभी सुधि साथिओं का हार्दिक आभारI
सभी प्रतिभागिओं से प्रार्थना है कि:
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