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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-130

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 130वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब इब्न-ए-इंशा

 साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए "

22           22        22          22          22         22         22       2  

 फेलुन    फेलुन     फेलुन      फेलुन      फेलुन     फेलुन     फेलुन   फा 

बह्र:  मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ

रदीफ़ :-  हुए
काफिया :- आम( बदनाम, नाकाम, शाम, काम, दाम, गुमनाम आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अप्रैल दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 24 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 अप्रैल दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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खतरही ग़ज़ल :

22    22    22    22    22    22    22    2

इक सच क्या हमने बोल दिया यारों हम बदनाम हुए  ! 

नाराज़ दोस्त हो गये और सर अपने इल्जाम हुए  !! 

भगवान ने भेजा बंदा कुछ नाम करे, तो काम हुए  ! 

आदमी आदम का बच्चा ठहरा सोचा, कोहराम हुए  !! 

एक रिवायत क्या तोड़ी हमने जग दुश्मन बन बैठा, 

एक हमी हुशियार थे यारो ं एक हमीं बदनाम हुए  ! 

घर में बैठे कई खिलाड़ी मिलकर खेल खेलते थे

एक झूठ कई बार दुहराते, सोचें, हुक्काम हुए  ! 

मशहूर हुए शह्र किस्से जिनके जब्र ओ जुल्म के 

कोतवाल है यार उनका ख्वाब गाह पहलगाम हुए ! 

दौर चला ऐसा बेढंगा गधे पँजीरी खाते हैं, 

 'चेतन' चाटुकार नहीं बन सके तो बेआराम हुए  ! 

मौलिक एवं अप्रकाशित

22 22 22 22 22 22 22 2

1_कौन गिने इस मयख़ाने में अबतक कितने जाम हुए
सुब्ह सवेरे आए ही थे हम चल देंगे शाम हुए

2_दुनिया के रस्ते भी सारे दो धारी तलवारें हैं
जिसने भी लापरवाही बरती उनके काम तमाम हुए

3_एक अकेला क़ैस नहीं था इस दुनिया में ऐ लोगो
राह-ए- मुहब्बत में चल चल कर हम भी बहुत नाकाम हुए

4_दुनिया तू भी तो बिल्कुल ही ज़ुल्फ़ ए जानाँ जैसी है
ज्यों ज्यों ख़म सुलझाये तेरे त्यों त्यों मुड़ कर लाम हुए

5_पूजा व्रत तप तीर्थ भूल कर मैं घर में ही बैठ गया
मातु पिता के चरण कमल ही मेरे चारो धाम हुए

6_इश्क़ विश्क़ के चक्कर में मत डाल मुझे ऐ दुनिया तू
तेरी थोड़ी सी ख़ुशियों के बोल दे कितने दाम हुए .

7_ज़ीस्त तुझे पहचाने कैसे आज 'अनिल' ये बतला दे
तुझसे तो अरसे से उसकी
दुआ हुई न सलाम हुए

गिरह-
उनकी गली के दीवाने हैं सब के सब मशहूर बहुत
एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बदनाम हुए

मौलिक एवं अप्रकाशित

अनिल कुमार सिंह  

आ. भाई अनिल जी, सादर अभिवादन । बहुत खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

"जिसने "भी लापरवाही बरती "उनके" काम तमाम हुए । यह मिसरा मुझे इन सर्वनामों के प्रयोग से ठीक नहीं लगरहा देेखिएगा। साादर..

जी आदरणीय मुसाफिर जी बहुत धन्यवाद . शायद जिसने के साथ उसके होना चाहिए .या फिर 'जिनने भी लापरवाही बरती " 

आ. भाई अनिल जी, आपकी पोस्ट गलत थ्रैड में पोस्ट हो गयी है । ...

सादर प्रणाम आदरणीय अनिल जी

खूबसुरत प्रयास के साथ अच्छी ग़ज़ल हुई

सादर

आदरणीय अनिल जी,नमस्कार

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई

बधाई स्वीकार कीजिये।

सादर।

नमन, भाई, अनिल कुमार सिंह, ग़ज़ल डालते हुए थोड़ा असावधानी बरती आपने, अन्यथा अच्छी ग़ज़ल कही है, आपने  ! " राह - ए - मुहब्बत मे ं चल चल कर हम भी बहुत नाकाम हुए " चल" का दुहराव भर्ती का प्रयास है, बंधुवर, त्याज्य है! इति  ! 

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

मुझे कुछ असआरों में गेयता प्रभावित होती सी लगी। मेरे हिसाब यूँ करें तो गेयता बढ़ जायेगी। विचार करें । सादर...

//थोड़ा सच क्या बोला हमने जगभर में बदनाम हुए  ! 

साथी सब नाराज़ हुए और सर अपने इल्जाम हुए  !! //

//एक रिवायत तोड़ के हमने जग को दुश्मन कर डाला  //

//घर में बैठे कई खिलाड़ी

खेल खेलते थे

मिलकर

सच कहते हैं झूठ को दुहरा सोच के वो हुक्काम हुए।।//

आदरणीय चेतन जी, नमस्कार

बहुत खूब ग़ज़ल हुई

बधाई स्वीकार कीजिये।

सादर।

आदरणीय Chetan Praka जी अच्छी कोशिश हुयी बधाई ....

22 22 22 22 22 22 22 2

इश्क़ में खिलते खिलते कितने तन्हा दिल गुलफाम हुए

एक हमीं को मिली ना मंज़िल एक हमीं गुमनाम हुए

छुपते छुपते छुप ना पायीं इश्क़ महब्बत की बातें

दीवानेपन के अफ़साने देखो कितने आम हुए

उन मज़हब की दीवारों को तोड़ न पाये दीवाने

जिन दीवारों के माने बस नफ़रत के पैगाम हुए

रोज़ के रोज़ उसी को अपना कहकर ख़ुश हो लेते थे

जिसकी याद में डूबे डूबे चमकीले दिन शाम हुए

यूँ ही जीते जीते इक दिन एक तमन्ना जाग उठी

मत पूछो दीवाने दिल के फ़िर क्या क्या अंजाम हुए

यूँ तो चाँद को पाने की हसरत औरों ने भी की थी

एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए

रोज़ ही देखा करते थे जिस चाँद को छूने के सपने

उसको छू कर भी यारो हम छू न सके नाकाम हुए

दिल को रोज़ सताता है अब रुस्वाई का ये आलम

जाने किस की पाई सज़ा की रोज़ नये इल्ज़ाम हुए

लड़ते लड़ते लड़ कर भी ना इच्छाओं से जीत सके

बुझते बुझते बुझ कर यूँ ही "आज़ी" आज़ तमाम हुए

"मौलिक व अप्रकाशित"

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