For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-123

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 123वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब क़ैसर-उल जाफ़री साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"लोगों ने फूलों के बदले तलवारें मँगवा ली थीं "

22  22  22  22   22   22   22   2 (कुल जमा 30 मात्राएं)

 

फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन    फ़ेलुन     फ़ेलुन   फ़ा 

बह्र:  मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 16-रुक्नी (बह्र-ए-मीर) 

रदीफ़ :-  थीं (बहुवचन)
काफिया :- आली( काली, जाली, डाली, पा ली , खा ली, खाली, वाली आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 सितंबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 26 सितंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 सितंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10066

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय निलेश जी

आदाब

इस लाजवाब तरही ग़ज़ल के शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें.

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, आख़री बाल पर सिक्सर जमा दिया, बहुत ख़ूब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। इस बार की सबसे बेहतरीन गजल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें ।

आदरणीय निलेश जी, वाह क्या गज़ल कही है आपने। आंखों की उपमा भी आपने निराली दी है। इस सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

वाह वाह वाह  क्या ख़ूब कहा आदरणीय  Nilesh Shevgaonkar जी "देर आए दुरुस्त आए" 

ढेरों मुबारकबाद आपको उम्दा गज़ल हेतु ...

लोगों ने फूलों के बदले तलवारे मँगवा ली थीं

ग़ज़लः

शरम बेच दी बाजारों, गरदन अपनी झुकवा ली थीं
नायिकाओ ने उससे पहले इज्जत उतरवा लीं थी

आप से क्या बतलाऊँ मैं, क्या गुजरी है मेरे साथ
मरने से पहले ही उसने जायदाद बँटवा ली थी।

अर्पण-तर्पण माँ का हुआ गंगा जाए बिना ही, घर
खबर किसी को दी नही, सामग्री पहले मँगवा लीं थी

घमासान छिड़ गया बेटों में खुली वसीयत माँ की
दौलत के बदले उसने दान-रसीदें लिखवा लीं थी

पहली मुलाक़ात में ढेर हो गयी हुशियारी सारी
कुछ इस तरह हमनशीं ने आँखों में आँखें डाली थीं

राज खुला माया नगरी का नशे की यहाँ मंडी है,
काम मिलने से पहले उसने ब्लाउज उतरवा ली थी

उम्र ज़रूर हुई है जाँ, थक़ी नहीं उम्मीदे मेरी,
मैंने पहले ही अपनोंं से इच्छाएं मनवा ली थी

शरु कर दिया चलन एक आवभगत का नया सा हमने
प्याले तो छलके थे महफिल फानूस उतरवा ली थीं

अजीब एक वाक्या हुआ मेहमानों के साथ महफिल में
लोगों ने फूलों के बदले तलवारें मँगवाली थी ।

मौलिक एवम् अप्रकाशित, 26-09-2020

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है, मुशाइर: में सहभागिता के लिये धन्यवाद ।

आदरणीय, समर कबीर साहब, आप कमजोर स्थलों को चिन्हिंत करते तो बेहतर होता। मेरे लिए उन बिन्दुओं पर काम करना भी अपेक्षाकृत सरल होता । सिरे से किसी के प्रयास को नकारना न तो न्यायसंगत और उत्साह- वर्धक ! आशा करता हूँ, आप मेरा कुछ ज्ञान वर्द्धन ज़़रूर करेंगे।

आप हमेशा अंतिम समय में ग़ज़ल पोस्ट करते हैं और चाहते हैं कि आपकी ग़ज़ल की हर कमी को इंगित किया जाए, पहले ये भी कर चुका हूँ, विस्तृत टिप्पणी चाहते हैं तो ग़ज़ल आयोजन के आग़ाज़ में पोस्ट किया करें ।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी तरही ग़ज़ल पर प्रयास के लिए बधाई। आदरणीय रदीफ़ बदल गई है ।

सादर।

आदरणीय समर कबीर साहब, आपका शत़्-शत़ धन्यवाद, आपने मेरी बात का संज्ञान लिया। भविष्य मे, मैं हमेशा आपके निर्देशानुसार मुशायरे के प्रारम्भ में ही ग़ज़ल पोस्ट करने का प्रयास करूँगा। शुभ रात्रि, वन्दे !

मुशायरा कामयाब बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों का धन्यवाद

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
6 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
11 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Nov 8

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service