आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय Kanak Harlalka जी बहुत सुन्दर व प्रेरणादायी, बधाई स्वीकार करेें सादर।
हार्दिक आभार आसिफ जैदी जी।
आदरनीया कनक जी , बहुत प्यारी लघुकथा के लिए बधाई हो
बहुत बहुत धन्यवाद मोहन बेगोवाल जी.।
आदाब। बहुत ही उम्दा। महिला सशक्तिकरण पर सकारात्मक प्रेरक विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक हरलाल्का जी। संवाद टुकड़ों में और बोलचाल या क्षेत्रीय भाषा में होने पर ज़्यादा असरदार हो सकती है।
अच्छी कथा है आदरणीया कनक जी।हार्दिक बधाई आपको।
सुंदर प्रेरणदायक और बढ़िया रचना कनक जी, नारी की हिम्मत और अस्तित्व को बरकरार रखती हुई रचना के लिए बधाई स्वीकार करे.
हार्दिक बधाई आदरणीय कनक जी।बेहतरीन लघुकथा।बहुत सुंदर संदेश ।स्त्री की प्रेरणा ही मनुष्य को हर परीक्षा में उत्तीर्ण कराती है।इसीलिये कहावत है कि हर सफ़ल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है।
बहुत सुंदर लघुकथा ,बधाई आपको आदरणीय कनक जी ,सादर
आ० कनक हरलालका जी, उम्दा लघुकथा हेतु बधाई स्वीकार करें
प्रेयसी
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प्रेयसी रसोद्वेलित होगी,ऐसा पुरुष को यदा-कदा अहसास होता। ऐसा प्रायः दैहिक साहचर्य -क्रिया के शिखर पर होता था।वह खुद को निहाल महसूस करता। समय गुजरता गया।आग जलती,बुझती।फिर जल जाती।वह सुलगता।उसे बुझाने की लालसा बलवती होती जाती।और वह धरती अपने आकाश से टपकती ज्वलित बूंदों के प्रहार से आहत होती।ओह और हाय का यह सिलसिला अनवरत चलता रहा।
फिर धीरे-धीरे अंग-संघर्ष कृत्योपरांत की मलिनता प्रेयसी ने उजागर की।उसका तथ्य था कि वह कृत्य भला ग्राह्य क्यों हो,जिसका अवसान मालिन्य जनक है। खैर संतानोत्पत्ति की हद तक उसे मान्यता देने में उसे कोई ज्यादा आपत्ति नहीं थी।
फिर कुछ अर्से बाद स्पष्ट हुआ कि रति-क्रिया तो उसके लिए नितांत पीड़ादायी है।वह तो अपने प्रियतम की खातिर सब कुछ झेलती जाती है।हाँ,उमगते उद्गार से उमंगों का पारावार पा लेने की उत्कंठा कभी-कभार जरूर मुखर हो हो जाया करती थी।अब नहीं होती।उम्र भी तो कोई चीज है।
अब प्रियतम के आहत महसूस करने की बारी है।वह सोचता है कि सिर्फ मेरे लिए उसने काफी कष्ट झेल लिये।मैंने किया ही क्या उसके लिए? बस उसके मनोभावों की आड़ में उसके जिस्म से खेला हूँ अबतक।पर अब ऐसा नहीं होगा। प्रण है मेरा।और अरमानों के कुलाँचे भरने पँर वह मुँह फिराकर सोने की कोशिश करता है, गुड नाईट कहकर।जबाब में भी गुड नाईट मिलती है।पर जब वह ऊँघता होता है,तो छोटा तकिया या छोटी तौलिया मुँह पर हल्के से पड़ जाते हैं।स्नेह-सूचना का सन्दर्भ है यह सब।फिर सब कुछ यथावत चलता रहता है।अनुरक्ति-विरक्ति मनोभावों की अनुगामिनी हैं।वे सदा बरक़रार रहती हैं।हाँ,हर चीज के मुखर होने का अपना समय होता है।
पार्क में बैठा प्रियतम यही सोच रहा था कि मोबाइल घनघना उठा।
'कहाँ हो?', प्रेयसी की आवाज आई।
'बस आ रहा हूँ।पार्क में था।'
'रात की बाते भुला देना।वह वक्त का झोंका था,और कुछ नहीं।'
वह बोला कुछ नहीं।घर की ओर चल पड़ा।
मौलिक व प्र काशित"
आदरणीय Manan Kumar singh जी लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।
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