For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-97

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 97 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब वाली आसी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"दूर तुझ से ये ज़मीन-ओ-आसमाँ हो जाएँगे"

2122    2122    2122   212

फाइलातुन   फाइलातुन    फाइलातुन    फाइलुन

(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ़)

रदीफ़ :-हो जाएँगे
काफिया :- आँ  (आसमाँ, बदगुमाँ, शादमाँ, जहाँ आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 जुलाई  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11654

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. अफ़रोज़ जी.. प्रस्तुत जुमले में अगर या गर नहीं है... अगर/ गर आने से वाक्य संभावना में बदल जाता है.. आपके मिसरे में अगर/ गर है // आप स्वयं विचार करें... रचना आपकी है.. मानना न मानना आप पर निर्भर है 

सादर 

अच्छी ग़ज़ल है मोहतरम अफ़रोज़ सहर साहिब बहुत बहुत बधाई आपको

जनाब शिज्जू शकूर साहिब सुख़न नवाज़ी का शु्क्रिया

जनाब अफ़रोज़ 'सहर' साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

जब उमर फ़ारूख़़ जैसे हुक्मराँ हो जाएँगे'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "उमर फ़ारुक़" ।

क़त्ल भी गर वो करें तो ज़िक्र तक होता नहीं।

आह भी जो हम भरेंगे सुर्ख़ियाँ हो जाएँगे'

ये शैर एक पुराने शैर की याद दिलाता है:-

"हम एआह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता'

मफ़हूम इसी शैर का आपके शैर में है, और दूसरी बात,सानी मिसरे में 'आह' और सुर्खियां' दोनों शब्द स्त्रीलिंग हैं, इसलिये रदीफ़ 'हो जाएँगे' की बजाय "हो जाएंगी" हो रही है,इस बिंदु पर मैं जनाब निलेश जी से सहमत हूँ ।

इन पहाड़ों को तो देखो किस कदर मग़रूर हैं।

आएगी जिस दिन क़यामत धज्जियाँ हो जाएँगे'

इस शैर में पहाड़ों के साथ 'धज्जियाँ' का क़ाफ़िया मुनासिब नहीं,क्योंकि 'धज्जी'शब्द का बहुवचन है "धज्जियाँ" और लुग़ात की रु से धज्जी कपड़े या काग़ज़ की होती है, 'पहाड़' के लिए "पाश पाश" का लफ्ज़ इस्तेमाल होता है,अगर आप देखना चाहें तो फ़िरोज़ुल लुग़ात के पेज नम्बर 699 पर देख सकते हैं,मज़ीद बह्स चाहें तो संकोच न करें,स्वागत है ।

आली जनाब समर साहिब,आदाब

ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी पर आपका मश्कूर हूँ,

लफ़्ज़ "फा़रूक़" टंकण त्रुटिवश "फ़ारूख़" हो गया है,

आपने एक कुहना शे'र पेश किया है मफ़हूम के ताअल्लुक से,

ख़ाकसार ये पूछना चाहता है कि क्या किसी मफ़हूम पर अलग अलग नज़रियात,लफ़ज़ियात, तज्रिबात,मुशाहिदात,और तख़य्युल से शे'र नहीं कहे जाते,?

दूसरी बात सानी मिसरे की,लफ़्ज़ "आह" और "सुर्ख़ियाँ" यकी़ॉनन स्त्रीलिंग हैं लेकिन 

जिस संदर्भ में इंहें बाँधा गया है, वहाँ पर "मुज़क्कर रदीफ़  हो जाएंगे की सेहत पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता,

जनाब वाली आसी साहिब जिनकी ग़ज़ल से ये तरही मिसरा लिया गया है, आपने भी अपनी इस ग़ज़ल के कुछ अश्आर में 

कवाफ़ी "तितलियाँ" स्त्रीलिंग, "बदलियाँ" स्त्रीलिंग"इस्तेमाल किया है,उदाहरण स्वरूपएक शे'र

तरही ग़ज़ल से कोट कर रहा हूँ,.

"मैंने तेरे साथ जो लम्हे गुजा़रे थे कभी"

"आने वाले मौसमों में तितलियाँ हो जाएँगे"

",इन पहाड़ों को तो देखो किस क़दर मग़रूर हैं"

"आएगी जिस दिन क़यामत धज्जियाँ  हो  जाएँगे"

एक बात यहाँ  कहना चाहूँगा, जनाब राहत इंदौरी साहिब ने अपने एक शे'र

"बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर"

"मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ  उड़ जाएँ"

में लफ़्ज़ "धज्जियाँ" इस्तेमाल हुआ है, जबकी दरिया की धज्जियाँ ,

ये तरकीब कुछ अजीब लगेगी, मगर चूँकि शायरी इशारों  किनाया का नाम है ,इसलिए 

रोज़ ए क़यामत पहाड़ों के उड़ने की कैफ़ियत को लफ़्ज़ "धज्जियाँ" से ताबीर किया गया, क्यूँकि 

"धज्जियाँ" वज़न में निहायत ही  हल्की और ज़रा से झोंके से उड़ जाती हैं ,

मैं समझता हूँ कि यहाँ पर मेरा काफ़िया "धज़्जियाँ" उचित है सादर,

/"आने वाले मौसमों में तितलियाँ हो जाएँगे//

गौर करने की बात है,इस शैर में जो आपने पेश किया है, स्त्रीलिंग शब्द से पहले एक पुल्लिंग शब्द है 'मौसम' इसके सहारे स्त्रीलिंग शब्द चलेगा, आपके मिसरे में 'आह' और 'सुर्खियां' दोनों शब्द स्त्रीलिंग हैं,इसलिये नहीं चलेगा,ग़ौर करें ।

अब रही 'धज्जियाँ' की बात,तो राहत के शैर में 'धज्जियाँ उड़ना' एक मुहावरा है, आपके शैर में मुहावरा नहीं है,इसलिये नहीं चल सकता,इसके लिए आपको लिसानियात का सबक़ पढ़ना होगा,पहाड़ पाश पाश होते हैं उनके लिए धज्जियाँ का लफ़्ज़ ग़ैर मुनासिब है, ग़ौर करें ।

आली जनाब समर साहिब आदाब,

//"गौ़र करने वाली बात है इस शे'र में जो आपने पेश किया है, स्त्रीलिंग शब्द से पहले एक पुल्लिंग शद है मौसम इसके सहारे 

स्त्रीलिंग शब्द चलेगा//

अब देखिये वालीआसी साहिब का ये मक्ता,

"मेरे नग़्मे मेरी खा़तिर कुछ भी हों वाली मगर"

"आग बरसाती रुतों में बदलियाँ हो जाएँगे"

जो कि आप की राय के एक दम उलट कहानी बयाँ कर रहा है,

वाली साहिब के मक्ते के सानी मिसरे में, अरूज़, के मकाम  पर लफ़्ज़ "आग" स्त्रीलिंग, लफ़्ज़ "बरसातीं" स्त्रीलिंग

लफ़्ज़ "रुतों" स्त्रीलिंग,और काफ़िया "बदलियाँ" स्त्रीलिंग फिर भी  वाली आसी साहिब का ये शे'र

तमाम अरूज़ी नुक्त ए नज़र से खरा और सटीक है,

रहा सवाल लफ़्ज़ धज्जियाँ का तो लफ़्ज़ का इस्तेमाल चाहे

  मुहावरे की शक्ल में हो या किसी और शक्ल में इस्तेमाल तो इस्तेमाल है, 

नग्में पर गौर कीजिये मान्यवर , 
सादर 

पहाड़ों पर गौ़र कीजिए साहिब,

सादर,

मैं पहाड़ वाले शेर की बात नहीं कर रहा हूँ.. शायद आप समझना नहीं चाहते... नगमें पुल्लिंग है इसलिए रदीफ़ ठीक है...
ये मेरी अंतिम टिप्पणी है..  आप जैसा उचित समझें वैसा कहें 
सादर 

//अब देखिये वाली आसी साहिब का ये मक्ता,

"मेरे नग़मे मेरी ख़ातिर कुछ भी हों वाली मगर

आग बरसाती रुतों में बदलियाँ हो जाएँगे"//

आप ही ग़ौर करें, "नग़मे- हो जाएँगे" न कि आग-रुतों-न बदलियाँ,

ये मक़्ता तो मेरी बात की तस्दीक़ करता है,अज़ीज़म ।

"धज्जियाँ" को आप जैसे चाहें इस्तेमाल करें और सहीह मानें,लेकिन वो इस्तेमाल ग़लत है,और ग़लत रहेगा ।

जनाब अफरोज सहर साहब, आदाब. ओबीओ मंच सीखने का मंच है, बेहतर से बेहतर करने का मंच. यहाँ जो तरबियत दी जाती है वो किसी के ज़ाती तौर तरीकों की मुहताज़ नहीं, चाहे शायर कितना भी बड़ा क्यों न हो. अभी मैं कल जनाब कुमार विश्वास की एक बेहद मशहूर ग़ज़ल सुन रहा था . उसके चाँद अशआर ये हैं: 

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

अब यहाँ देखें कि काफ़िये में क्या दोष है. पागल और बादल के साथ दिल काफ़िया नहीं हो सकता. खारिज़ है. यह आप भी जानते हैं. मगर मक़बूलियत कोई और बात है और अरूज़ कोई और. ओबीओ में आपको सही मिसालें दी जाती हैं, मकबूल मिसालें नहीं. यहाँ के जो असातिज़ा हैं उनका यही एक मक़सद है. आप जब मक़बूल हो जाएं तो कुछ भी आज़ादी लेकर कहें, वो इक दीगर बात है. मगर, हम जब तक मश्के सुखन में हैं तब तक हमारे ऊपर अरूज़ की तमाम बंदिशें आयद हैं, और यही जनाब समर कबीर साहब और निलेश जी कहना चाह रहे हैं. 

यह कोई बहस की बात नहीं. बिना इताअत के हम दुनिया के अफज़ल उस्ताद से भी कुछ नहीं सीख सकते. यही मेरी आपसे दरख्वास्त है. सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
20 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service