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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-28 (विषय: सुख)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले  27 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-28
विषय: "सुख"
अवधि : 30-07-2017 से 31-07-2017 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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दो विपरीत परिस्थितियों/परिवेश के पात्रों की 'च्वाइस/सुख/प्राथमिकता' की तुलना करने में जिन संवादों या वाक्यांशों की पुनरावृत्ति हो गई है, उनसे बचने के लिए रचना के उत्तरार्ध को लेकर किसी तरह उसमें पूर्वार्ध को कम शब्दों में समायोजित कर कसावट की जा सकती है मेरे विचार से। आम व सहज कथानक पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी बिष्ट वाही जी।

हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी, बेहतरीन प्रस्तुति।दिखावा करनेवाले लोगों पर करारी चोट।सफ़ेद पोश बन कर गाड़ियों में घूमेंगे।मॉल में, होटल में,मंहंगे बिल आँख बंद कर भर देंगे मगर छोटे छोटे लोगों से मोल भाव करेंगे।कुली से,रिक्शेवाले से, फ़ेरीवाले से दो दो रुपये के लिये गाली गलौज पर उतर आयेंगे।अच्छी रचना।पुनः बधाई।

 बहुत बढ़िया रचना, खास तौर पर नाक पर रुमाल रखना और फिर खुद-ब-खुद हट जाना बहुत कुछ कह रहा है| सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया जानकी जी| एक विचार यदि कार वाला व्यक्ति कार ही में बैठा रहता तो? हालांकि उतरा भी जा सकता है, उसमें कुछ भी असामान्य नहीं लेकिन कई बार ठेली से कुछ खरीदने के लिए गाड़ी से उतरने की बजाय गाड़ी उसके सामने लगा कर ही मांग लिया जाता है| सादर,

बहुत उत्तम सुझाव है भाई चंद्रेश कुमार छ्तलानी जी.

बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय जानकी जी ,बधाई आपको
मोहतरमा जानकी जी आदाब,अच्छी लगी लघुकथा,बधाई आपको ।
आम को प्रतीक बना कर बहुत उम्दा कथा लिखी है।ये देखने में बड़े दिखने वाले लोग अमूमन दिल के छोटे होते है।बढ़िया कथा है बधाई आद० जानकी वाही जी ।

आदरणीय जानकी जी, बहुत बढ़ीया लघुकथा बनी है । लघुकथा आकारगत सीमा का अतिक्रमण करती प्रतीत होती है जबकि वास्‍तव में ऐसा है नहीं । वैसे भी लघुकथा की पहचान उसके आकार की बजाय उसकी वेधक क्षमता है । आकारीय मितव्‍ययता वांछनीय तो हैं परन्‍तु कोई अनिवार्य बाध्‍यता नहीं है । लघुकथा का आकार उसके कथानक पर निर्भर करता है बस ध्‍यान ये देना है कि कुछ अनावश्‍यक न हो । प्रस्‍तुत लघुकथा में जिस साधारण से कथानक को लेकर कथा बुनी गयी है और कथ्‍यों का सटीक संप्रेषण लघुकथा को अद्वितीय बना रहा है । / तुलते मीठे आमों की खुशबू साईकिल वाले की नज़रों में अपने बच्चों की मीठी हँसी के रूप में झलकने लगी।  'सुख' जिस प्रखरता से उभरा है वह प्रशंसनीय है । शीर्षक चयन कुछ कमजोर लगा । सादर शुभकामनाएं ।

आदरणीया जानकी वाही जी आदाब, अच्छी लघुकथा काक्षप्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
मुहतर्मा जानकी साहिबा ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर लघुकथा ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

बहुत अच्छी कथा बधाई  जानकी जी

बहुत खूब सखी! बड़ी गाड़ी बड़े दिल की पहचान नहीं। आपकी कथा की जो बात सबसे अच्छी लगी वो है छोटे छोटे बिंदुओं के माध्यम से चित्र बनाना। कथा अपना सफल सन्देश देने के साथ साथ एक मधुर मुस्कान छोड़ गई मन मे वो पल घूम गया जब कही से भी वापस लौटते समय बच्चे की मनपसन्द खाने की वस्तु लाते हुए सिर्फ बच्चे की सूरत याद आती है। बहुत बधाई सखी इस कथा के लिए।

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