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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-78

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 78 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब रज़ी तिर्मिज़ी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
" तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये "

फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा 

22 22 22 22 22 22 22 2

(बह्र:  मुतदारिक मुसम्मन् मक्तुअ मुदायफ महजूफ)
रदीफ़ :- याद आये 
काफिया :- आने (जमाने, बहाने, निशाने, अफ़साने आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 दिसंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक २4 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 दिसंबर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय तस्दीक अहमद साहब,प्रयास को पसन्द करने के लिए दिल से आभार!मार्गदर्शन के लिए भी आभारी हूँ।सादर

आदरणीय सतविन्द्र जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

आदरणीय मिथिलेश जी,प्रयास को पसन्द कर सराहकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत आभार!

इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई आ सतविंदर कुमार जी 

ईमान यहाँ तैयार रहा कुछ टुकड़ों में बिकने को
देकर दुनिया दीन खरीदे वे नज़राने याद आए

बधाई हो

आदरनीय सतविन्द्र भाई , अच्छी गज़ल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।

जब-जब बात चली चाहत की,मेरे आगे लोगों में
तुम याद आए और तुम्हारे साथ जमाने याद आये।


ईमान यहाँ तैयार रहा कुछ टुकड़ों में बिकने को
देकर दुनिया दीन खरीदे वे नज़राने याद आए।

वाह्ह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह 

क्या खूब बांधा है,,,,दिल से बधाई

बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय सतविन्द्र भाई जी। मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

आदरणीय सतविन्द्र जी ख़ूबसूरत कलाम के लिए मुबारकबाद कबूल करें| निम्नांकित शेर बेबहर हो रहा है 

ईमान यहाँ तैयार रहा कुछ टुकड़ों में बिकने को..इस पर नज्रेसानी कर लें

दूसरी बात यह पूछनी है की "राणा" क्या आपका तखल्लुस है, अगर है तो इसे ""(इनवर्टेड कामा) के साथ लिखें|

हार्दिक शुभकामनाएं|

             ग़ज़ल

 

मुझको मेरी बर्बादी के कुछ अफ़साने याद आये

सुनकर शहनाई जो रोये  वो दीवाने याद आये

 

जब जग ने मुझको ठुकराया तुमने भी दामन छोड़ा

तब जिसने थी बाहें थामी वो वीराने याद आये 

 

सिर रक्खे प्रिय के काँधे पर बेसुध जब उसको देखा

तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये 

 

झुटपुट संध्या में एकाकी नदिया पर डाले वंशी

मदिराये  मांझी गीतों के वो पैमाने याद आये  

 

मंदिर में ईश्वर के सम्मुख हर दीपक की ज्वाला में

आहुतियों सा स्वाहा होते वो परवाने याद आये

 

सुनकर गाथा बीते युग की आँखे भर आयीं मेरी  

आजादी का दीवानापन वो मस्ताने याद आये

 

फांसी के फंदे को हंस कर जिन-जिन वीरों ने चूमा

वतनपरस्ती के स्मारक वो मर्दाने याद आये

 

जाने क्यों जीवन संध्या में फिर पीड़ा-पंकिल तेरी  

सपनीली आँखों का जादू वो याराने याद आये  

 

माँ की खुशबू, उसका आँचल, उसकी सांसो का जादू

वो टुटके कजरौटे वाले वो सिरहाने याद आये

 

 {मौलिक व अप्रकाशित )  

 

वाह जी वाह आदरणीय  डॉ. गोपाल नारायण जी बहुत ही सुंदर , बहुत ही खूब ग़ज़ल के लिए बधाइयां

 आ० अमित जी , सादर आभार

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