आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय नीता जी!
हार्दिक आभार आदरणीय सतविंद्र कुमार जी!
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी! आपका सुझॉव उत्तम है परंतु मेरी सोच थोड़ी भिन्न है क्योंकि गुस्से में दीवार पर कुछ लिख देना और एक हथियार बंद भीड़ का सामना करना दो अलग अलग बातें हैं!वैसे भी इस तरह के हादसे कुछ ही क्षणों में ही हो जाते हैं, वर्ना जिसके साथ यह हादसा हुआ वह खुद भी एक फ़ौज़ी था!!आपकी सोच में यदि ऐसा कुछ है कि भिखारी को यह करना चाहिये था तो अवश्य बताइये! मैं विचार करूंगा!
वाह वाह !! इस आयोजन की सर्वश्रेष्ठ रचनायों में से एक रचना है यह, पढ़कर मन बाग़ बाग़ हैI पंच लाइन तो नॉक-आउट कर देने में सक्षम है, ढेरों ढेर बधाई आ० तेजवीर सिंह जीI अब थोड़ी सी तकनीकी बारीकी पर बात; कैप्टेन रवि सेना में इंजिनियर था या एमआईएस में था या फिर रेखा डाक्टरी की पढाई कर रही थी या फैशन डिजाइनिंग, क्या इन बातों के ज़िक्र के बगैर भी का इस लघुकथा पर कोई फर्क पड़ता? बात सीधे वेलेन्टाइन डे से शुरू नहीं की जा सकती थी? रवि के सेना में होने की बात का ज़िक्र इसलिए भी सही नहीं लगा कि एक कैप्टेन रैंक के बंदे ने चुपचाप मार सह लीI ज़रा विचार करिएगाI
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी! आपका इस लघुकथा को सराहना मेरे लिये एक गुरू के आशीर्वाद की तरह है क्योंकि मैंने लघुकथा लेखन विधा के लिये सदैव आपको गुरू माना है!इस आशीर्वाद की मुझे एक अरसे से तलाश थी! यह मुझे एक प्रेरणादायक मंत्र की तरह और भी बेहतर लेखन के लिये प्रेरित करेगा!आपने जिन तकनीकी बारीकियों की चर्चा की है, मैं उनसे शत प्रतिशत सहमत हूं!रवि को सैन्य अधिकारी दिखाने के पीछे केवल एक ही मकसद था कि इस तरह के उन्मादी लोग किसी को भी नहीं छोड़ते! प्रयास करूंगा कि इसका संशोधित रूप प्रस्तुत कर सकूं!आपका पुनः हार्दिक आभार!
जनाब तेजवीर साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
हार्दिक आभार आदरणीय तसदीक अहमद खान साहब जी!
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