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अच्छी सन्देश परक रचना ,प्रभावशाली पञ्च लाइन हार्दिक बधाई बबिता जी
कटु सत्य का वर्णन, त्रेता युग में मंथरा जैसी दासी राजनीति खेल सकती थी और एक धोबी की बातों का भी मान रखा जाता था| द्वापर युग में कृष्ण सारथि तक बने, धृतराष्ट्र राजगद्दी चाहने के बावजूद भी अपने भाई के राजा बनने पर उनका मान रखते रहे, भीष्म ने अपने पिता के लिये भीषण प्रतिज्ञा कर ली| ऐसी राजनीति इस युग में मिलना बहुत मुश्किल है| अब सिद्धांत नहीं गुटों में बंटवारा है| मैं जिस गुट का हूँ वो जो भी करे सब सही है और जिस गुट का नहीं हूँ वो जो भी करे गलत| और गुट बदलने पर उल्टा हो जाता है| इस विकृत मानसिकता वाली राजनीति के चेहरे पर सच में कीड़े रेंग रहे हैं| सादर बधाई स्वीकार करें इस रचना के सृजन हेतु|
मोहतरमा बबिता साहिबा , अच्छी लघु कथा हुई है ..... मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
अचानक प्रिंसिपल मैडम बोली-"ऐसा करते है,दो दिन के अंदर इन सब बच्चों की परीक्षा ले लेते है।परिणाम आने पर तो छुट्टी होनी ही है। ऐसा करो सब अभिभावकों को डायरी में कारण के साथ पूरी बात लिख दो बच्चों का रिविज़न हो जायेगा और तान्या आराम से ऑपरेशन करवाने जा पायेगी।"........................प्रिंसिपल का सार्थक और सहयोगी रवैया , बहुत ही अच्छा लगा । अच्छी लघु कथा हेतु दिल से बधाई स्वीकारें ।
बहुत ही अच्छी रचना है आदरणीया सीमा जी , हार्दिक बधाई ! सादर
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