आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-164
विषय : "जल-जीवन-हरियाली"
आयोजन अवधि- 13 जुलाई 2024, दिन शनिवार से 14 जुलाई 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 जुलाई 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, एक से बढ़कर एक दोहे। वाह। आपने विषय को सार्थक करते उत्तम दोहे रचे हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर
हरियाली के अंत पर, सब जो बोलें साथ।
फिर तो निश्चित मानिए, भली करें रघुनाथ।।
सारे जल व्यापार में, जितने भी हों लीन।
अपना तो बस ध्येय हो, जल को रखना क्लीन।।
देते हैं उद्योग जो, बस नदियों को रोग।
उन सबके उपचार का, करना है उद्योग।।
धरती सहते थक चुकी, अब मानव का स्वार्थ।
धरती खुद सिखला रही, मानव को परमार्थ।।
हरियाली का कष्ट ही, मानवता का कष्ट।
अब भी ना समझा अगर, मानव समझो नष्ट।।
धुर रेतीले रोग से, धरती का उपचार।
हर मानव को रोपना, हर दिन पौधें चार।।
हरियाली से है जुड़ी, जल जीवन की सोच।
किंतु मनुज की सोच में, अब तक विस्तृत मोच।।
जल जंगल से है बचा, यह मानव संसार।
सुन्दर दोहों के लिए, धामी जी आभार।।
आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर सुन्दर दोहावली से मनभावन प्रतिक्रिया और स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार।
अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर
हरियाली के साथ ही, जल, जीवन की सोच
कंक्रीट के जाल को, कुछ तो कर संकोच।७।// वाह..बहुत सुन्दर दोहावली हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी
*
आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, प्रदत्त विषय पर आपने सुन्दर दोहावली रची है. प्रकृति विनाश में मानव समाज का स्वार्थवश मौन सचमुच खतरनाक है. सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई स्वीकारें. अमृत को अमरित पढ़ना पड़ रहा है. एक सुझाव आदरणीय समर साहब का भी सही है. सादर
आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। शब्दों में बदलाव का प्रयास करता हूँ।
वाह,विषय फर लाजवाब दोहे हुए आदरणीय धामी जी। बधाई हो।
सार छंद
छन्न पकैया छन्न पकैया, लाएगी हरियाली
अम्बर पर छाई है यारो, आज घटा जो काली
छन्न पकैया छन्न पकैया, बरसे जब-जब पानी
इस पानी के कारण धरती,हो जाती है धानी
छन्न पकैया छन्न पकैया, कोयल कूके ऐसे
देती बारिश के आने का, हमें दिलासा जैसे
छन्न पकैया छन्न पकैया,झूमें ऐसे बादल
उनकी आवाज़ें सुन-सुन कर,मन होता है पागल
छन्न पकैया छन्न पकैया,हर जानिब है जल थल
ऐसे मौसम में होता है, मन भी कितना चंचल
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
आदरणीय आपको सादर प्रणाम । छन्न पकैया छंद अच्छे हैं। बधाई।
बहुत शुक्रिय: प्रिय दिनेश कुमार जी ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |