For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उपलब्धियाँ - डॉo विजय शंकर

उप-शीर्षक -आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस से आर्टिफिशल हँसी तक।

प्रकृति ,
अनजान ,
पाषाण ,
ज्ञान
विज्ञान ,
गूगल ,
आट्रिफिश्यल विवेक ,
आर्टिफिशियल हँसी ,
शुभ प्रभात।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 20, 2017 at 7:01pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , रचना पर उपस्थिति एवं उसे मान देने के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Samar kabeer on October 20, 2017 at 11:01am
आपकी बात पर एक पुराना मतला याद आ गया साझा कर रहा हूँ :-
'सिमतों का तअय्युन है न मंज़िल का पता है
इंसान मशीनों की तरह भाग रहा है'
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 20, 2017 at 9:22am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी पकड़ बहुत गहरी और नज़र बहुत सही जगह पर पड़ती है , आभार , आभार। कुछ बात यूं समझ में आती है कि साहित्य और समाज का बड़ा गहरा रिश्ता होता है। साहित्य समाज का दर्पण होता है , समाज साहित्य को दर्पण की तरह देखता रहता है। दोनों एक दूसरे से लाभान्वित होते रहते हैं। बस इस समय कुछ वक़्त की बात है कि वर्तमान कुछ ऐसा चल रहा है कि समाज ने साहित्य से मुँह मोड़ रखा है। आप कुछ लिख दीजिये , लोग अपने में कुछ इस क़दर मशगूल हैं कि उन पर कोई असर नहीं पड़ता है। विज्ञान अपनी राह पर है , अर्थशास्त्र अपनी चिंता में डूबता-उतराता हुआ है , राजनीति का पता नहीं किस समाज के लिए हो रही है , न किसी को पानी की चिंता है , न हवा की। एक दौड़ हो रही है , सब भाग ले रहे हैं , लक्ष्य का किसी को पता बस दौड़ रहे हैं। डिजिटल दुनिया है , आकड़ों के खेल हैं , सफलताएं सर चढ़ कर बोल रहीं हैं , आदमीं अचंभित है , तरक्की हो रही है , हाथ कुछ लगे न लगे , वह वेल - इन्फोर्मेड है , इसी में खुश है। साहित्य है , जरूर है , लेकिन आदमी से थोड़ा दूर है , बेअसर है , शायद इसलिए कि यह युग , इन्फर्मेशन युग है।
आप से कुछ बात की , अच्छा लगा। आपकी बधाइयों के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 20, 2017 at 8:40am
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी , आपकी बात में दम है , विषय सार्थक है , प्रयास करूंगा। बस बात मूड बनाने की है। सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2017 at 10:27pm
आदरणीय विजय सर आपकी रचनाएँ विविधता से भरी होती है आपकी सोच और आपके नूतन प्रयोग पढ़ने में आनन्ददाई होते है।।।दीवाली के इस पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें सादर
Comment by Samar kabeer on October 18, 2017 at 12:32pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,आपकी कविताएं दिल को छूती हुई गुज़रती हैं और दिल में घर बनाकर बैठ जाती हैं,और इसका मूल कारण है आपकी गहरी सोच जो नये नये कमाल दिखाती रहती है ।
आपकी ये कविता भी उसी श्रेणी में आती है,मस्नूई पनः पर आपने सधे हुए शब्दों में जो तंज़ किया है इस पर कई पृष्ठ लिखे जा सकते हैं,आज के इस तेज़ रफ़्तार दौर में हर चीज़ मस्नूई होती जा रही है,इस बिन्दू पर आपकी क़लम से निकली ये जादुई तहरीर अपना तिलिस्म बिखेरने में पूरी तरह कामयाब है, इस शानदार प्रस्तुति के लिए दिल की गहराइयों से मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2017 at 11:17am
दरअसल मैं उप-शीर्षक को वैकल्पिक शीर्षक समझ रहा था पाठकों के सुझाव हेतु। इस बेहतरीन उप-शीर्षक पर हम आपकी लघुकथा/व्यंग्य भी पढ़ना चाहेंगे आदरणीय सर डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 18, 2017 at 12:45am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , आपकी उपस्थिति और आपकी प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 18, 2017 at 12:45am
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी , आपका बहुत बहुत आभार। शरीरक्षक के सुझाव के लिए भी धन्यवाद। आपका रूचि लेने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया , पर संभवतः आप उप - शीर्षक से सहमत होंगे , मैंने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस इस लिए लिया है कि आज कल गूगल की कृपा से यह शब्द बहुत अधिक चलन में है , वास्तविक है , लोग इसके महत्व को मानते हैं। उसी तरह आर्टिफिशल हाई भी है , आर्टिफिशल है पर है , फेफड़ों और नसों पर असर तो करती है। दोनों बातें जीवन में आ चुकी हैं। कितनी सफल होगीं , यह तो भविष्य बताएगा। आशा है आपको इस दृष्टि से उप- शीर्षक उपयुक्त लगेगा। एक बार पुनः आभार , सादर।
Comment by Mohammed Arif on October 17, 2017 at 4:59pm
वाह! वाह!! मज़ा आ गया । गागर में सागर समा दिया आपने । बहुत ही बेहतरीन कटाक्ष । हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें आदरणीय विजय शंकर जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
3 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
3 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
3 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
4 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
9 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service