For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(1)
सारे घर के लोग हम, निकले घर से आज
टाटा गाड़ी साथ ले, निपटा कर सब काज।
निपटा कर सब काज, मौज मस्ती थी छाई
तभी हुआ व्यवधान, एक ट्रक थी टकराई।
ट्रक पे लिखा पढ़ हाय, दिखे दिन में ही तारे
'मिलेंगे कल फिर बाय', हो गए घायल सारे।।

(2)
खोया खोया चाँद था, सुखद मिलन की रात
शीतल मन्द बयार थी, रिमझिम सी बरसात।
रिमझिम सी बरसात, प्रेम की अगन लगाये
जोड़ा बैठा साथ, बात की आस लगाये।
गूंगा वर सकुचाय, गोद में उसकी सोया
बहरी दुल्हन पाय, चैन जीवन का खोया।

(3)
गौरी बैठी आड़ में, ओढ़ दुप्पटा लाल
दूरबीन से देखकर, होवे मालामाल
होवे मालामाल, दौड़ जंगल में भागा
पीछे कुत्ते चार, हांपने मजनू लागा
हांडी गोल मटोल, नहीं कोई भी छोरी
हरित खेत लहराय, खेत की थी वो गौरी।।

(4)
रोटी बोली साग से, सुनो व्यथा भरतार
गूंथ गूंथ बेलन रखे, मारे नित नर- नार।
मारे नित नर -नार, पीड़ सब सह लेती हूं
खाकर भी बिसराय, तभी मैं रो पड़ती हूँ।
पिज़्ज़ा बर्गर खाय, करेंगे बुद्धि मोटी
पड़ेंगे जब बिमार, याद तब आये रोटी।

(5)
फूफा-जीजा साथ में, दूर खड़े मुख मोड़
नया जवाई आ गया, कौन करे अब कोड़।
कौन करे अब कोड़, आग मन में लगती है,
राजा साडू आज, उसे आँखें तकती है।
रगड़ रहा ससुराल, समझ हमको अब लूफा
हुए पुरातन वस्त्र, रो रहे जीजा-फूफा।8

(6)
बहना तुमसे ही कहूँ, अपने हिय की बात
जीजा तेरा कवि बना, बोले सारी रात
बोले सारी रात, नींद में कविता गाये
भृकुटी अपनी तान, वीर रस गान सुनाये
प्रकट करे आभार, गजब ढाता यह कहना
धरकर मेरा हाथ, कहे आभारी बहना।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hariom Shrivastava on January 20, 2019 at 12:08am

आदरणीया सुचिसंदीप अग्रवाल जी,हास्य से भरपूर बहुत सुंदर कुण्डलिया छंद सृजित हुए हैं। किंतु शिल्प पर कार्य शेष है। कुछ जगहों पर प्रवाह बाधित है व मात्रात्मक भी असंतुलन है।

Comment by Hariom Shrivastava on January 20, 2019 at 12:03am
  1. आदरणीया सुचिसंदीप अग्रवाल जी,बहुत सुंदर हास्य से सराबोर कुण्डलिया छंद रचे हैं,किंतु अभी शिल्प पर कार्य शेष है। कुछ जगहोंं पर प्रवाह ब धित है व मात्रात्मक असंतुलन है।
Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 18, 2019 at 7:26pm

आ लक्ष्मण मुसाफ़िर जी, अतिशय आभार आपका।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2019 at 4:04pm

आ. सुचिसंदीप जी, बेहतरीन हास्य कुंडलियाँ हुयी हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 18, 2019 at 3:31pm

हार्दिक आभार आ भाई समर कबीर जी। त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करवाने हेतु बहुत आभारी हूँ आपकी।

Comment by Samar kabeer on January 18, 2019 at 3:10pm

बहना सुचिसंदीप अग्रवाल जी आदाब,हास्य व्यंग के अच्छे कुण्डलिया छन्द रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'ट्रक पे लिखा पढ़ हाय'--12 मात्रा

'मिलेंगे कल फिर बाय'--12 मात्रा

'ओढ़ दुप्पटा लाल'

"ओढ़ दुपट्टा लाल"

Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2019 at 2:02pm

हाहाहा हाहाहा,, अरे ऐसा नहीं है बहन सुचिसंदीप अग्रवाल जी। मैं इसे हास्य व्यंग्य के रूप में ही लिया और पढ़ा है, अपने ऊपर लेने का कोई तुक ही नहीं।

Comment by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on January 18, 2019 at 1:36pm

भाई सुरेंद्र नाथ सिंह जी, प्रोत्साहन एवम सराहना हेतु कोटिशः आभार आपका। मजाक कर रही हूँ कि लगता है अंतिम कुंडलिया आपने अपने ऊपर ले ली है। 

Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2019 at 9:53am

आद0 सुचिसंदीप अग्रवाल सादर अभिवादन। बढिया कुण्डलिया लिखी आपने,, हास्य भी गजब का ओत प्रोत हुआ। अंतिम कुण्डलिया बेहद हस्यव्यंग की रही। बधाई स्वीकार कीजिये।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service