बह्र : 2122 1122 1122 22
कैसे बनता है कोई शख़्स तमाशा देखो
आओ बैठो यहाँ पे हश्र हमारा देखो
कैसे हिन्दू को किया दफ़्न वहाँ लोगों ने
एक मुस्लिम को यहाँ कैसे जलाया देखो
जिस तरह लूटा था दिल्ली को कभी नादिर ने
उसने लूटा है मेरे दिल का ख़ज़ाना देखो
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो
नूर से जल के, फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों ने निकाला देखो
इक जहन्नम के सिवा और भला है भी क्या
मैं कहूँगा न किसी से कि ये दुनिया देखो
लोग जितना ही सुधरने को हमें कहते थे
हमने उतना ही यहाँ ख़ुद को बिगाड़ा देखो
मैंने भी छोड़ दिया ख़ुद को तो अब दुख कैसा
तुमने चाहा ही यही था मुझे तन्हा देखो
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और इस्लाह का बहुत-बहुत शुक्रिया. आपकी सलाह अनुसार शेर को दुरुस्त करने का प्रयास करता हूँ. हार्दिक आभार. सादर.
महेन्द्र जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई, बाकी जो समर साहब कहें हैं वो गौर करने वाली बात है आप के माध्यम से मुझे भी सीखने को मिला
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये।
आदरणीय महेंद्र जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. मतला खास तौर से अच्छा लगा. हार्दिक बधाई.
आदरणीय महेंद्र कुमार जी, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद.
मैंने भी छोड़ दिया ख़ुद को तो अब दुख कैसा
तुमने चाहा ही यही था मुझे तन्हा देखो
बहुत ख़ूब. वाह वाह.
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
' उन सितारों ने वहाँ रौशनी से जल भुन कर
चाँद को आसमाँ से मिल के निकाला देखो'
इस शैर के ऊला में 'वहां' और सानी में 'आसमाँ' शब्द शिल्प की कमज़ोरी का प्रतीक है,ग़ौर करें,यूँ कर सकते हैं:-
'नूर से जल के फ़लक से कोई साज़िश करके
चाँद को कैसे सितारों ने निकाला देखो'
आदमी वो नहीं होता जो दिखा करता है
जो नहीं दिखता हो जैसा उसे वैसा देखो --- क्या बात है साहेब तबीयत तर कर दी गज़ब के अशआर है |
आदरणीय महेंद्र जी बहुत अच्छी ग़ज़ल आपने कही दिली मुबारकबाद पेश करता हूं दिखा दिखता इन शब्दों के अपेक्षा दिखाई शब्द का प्रयोग करें तो वाक्य विन्यास की दृष्टि से अधिक अच्छा होगा सादर
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