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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८९

२२१२ १२१२ २२१२ १२

नाकामे इश्क़ होके अपने दर पहुँच गया
सहरा पहुँच के यूँ लगा मैं घर पहुँच गया //१

दिल टूटने की शह्र को ऐसी हुई ख़बर
दरवाज़े पे हमारे शीशागर पहुँच गया //२

उसको भी मेरे होंठ की आदत थी यूँ लगी
साक़ी के हाथ मुझ तलक साग़र पहुँच गया //३

जब भी हुई जिगर को तुझे देखने की चाह
ख़ुद चल के आँख तक तेरा मंज़र पहुँच गया //४

आओ कि खेलें इश्क़ की बाज़ी ब ख़ूने दिल
गर्दन पे तेरे हुस्न का ख़ंजर पहुँच गया //५

हैरत से साक़ी देखता था मैक़दे में मैं
पीने को फिर से करके दामन तर पहुँच गया //६

वो यूँ कि कशिशे राह में डूबे ही हम रहे
मंज़िल पे गरचे मील का पत्थर पहुँच गया //७

मरने की चाह जब भी तेरे इश्क़ में हुई
कब जह्र मेरे हाथ चुटकी भर पहुँच गया //८

महफूज़ रख सका न मैं अपने मकाँ की नींव
ख़ित्ते पे मेरे कोई क़द्दावर पहुँच गया //९

ज़ेरे जुनूने आशिक़ी हैरत नहीं कि क्यों
कोहे अमा में कोई दीदावर पहुँच गया //१०

टूटे हैं कब अमीर के घर बारिशों में राज़
बामे ग़रीब तक तो अब्ला ख़र पहुँच गया //११

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

ख़िते- ज़मीन का टुकड़ा जिसपे घर बने या बनाया जा सके; कोहे अमा- अन्धकार की वादी; अब्ला ख़र- बारिश

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Comment by Samar kabeer on January 1, 2019 at 11:02pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मेरे ख़िते पे कोई क़द्दावर पहुँच गया'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "ख़ित्ते"

' पहुँचा नहीं जहाँ कोई शायर पहुँच गया '

इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,सहीह शब्द है "शाइर" 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:10pm

वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह  ,आपकी ख़ुद साख़्ता बह्र में आपने फिर कमाल कर दिया लाजवाब हरेक अशआर पर दाद क़ुबूल फरमाएं जनाब राज नवादवी साहेब | 

Comment by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 9:07pm

आद0 राज नवादवी साहब सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल पर आपको दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ

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