For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

                    चिन्ह

 

                       

       कोई अविगत "चिन्ह"
       मुझसे  अविरल  बंधा

       मेरे अस्तित्व का रेखांकन करता

       परछाईं-सा

       अबाधित, साथ चला आता है

                     

       स्वयं  विसंगतिओं   से  भरपूर

       मेरी अपूर्णता का आभास कराता

       वह अनन्त, अपरिमित

       विशाल घने मेघ-सा, अनिर्णीत

       मंडराता है स्वछंद मेरे क्षितिज पर

 

       उस "चिन्ह" से जूझने की निरर्थकता

       मुझे अचेतन करती ले जाती है सदैव

       निर्दयता से घसीट कर उस छोर पर

       जहाँ से मैं अनुभवों की गठरी समेट

       कुछ और पीड़ित

       कुछ और अपूर्ण

       उस एकांत में लौट आता हूँ

       जहाँ संभ्रमित-सा प्राय:

       स्वयं को जान नहीं पाता

                           ...पहचान नहीं पाता

 

       सोचता हूँ यह "चिन्ह"

       कैसा एक-निष्ठ मित्र है मेरा

       जो मेरी अंतरवेदना का

       मेरे संताप का, हिस्सेदार बनकर

       कभी इसका अपना हिस्सा नहीं मांगता

       और मैं  शालीनतापूर्वक अकेले

        इस हलाहल को निसंकोच

        शत-प्रतिशत अकेला पी लेता हूँ

        पर उसके कसैले स्वाद को  मैं

        लाख प्रयत्न कर छंट नहीं पाता

 

        वह "चिन्ह"

        मेरा मित्र हो कर भी मुझको

        अपरिचित आगन्तुक-सा

        मानो  अनुभवहीन  खड़ा

        असमंजस  में  छोड़  जाता  है

        और  मैं  उस  मुद्रा  में  द्रवित

        स्मृति-विस्तार  में  तैर  कर

        पल भर में देखता हूँ सैकड़ों और

                      ऐसे ही  अविनीत मित्र

         जो इसी "चिन्ह" से अनुरूप

         निरंतर मेरा विश्लेषण

         मेरा परीक्षण करते नहीं थकते

 

         पर मैं चाह कर भी कभी

         उनका विश्लेषण

         उनका परीक्षण करने में

                 सदैव असमर्थ रहा

         क्योंकि यह सैकड़ों चिन्ह

         मेरे  ही  माथे  पर  ठहरे

         प्रचुर   प्रश्न-चिन्ह   हैं

         जिनमें उलझकर आज

         मैं  स्वयं

         रहस्यमय प्रश्न-चिन्ह बना हूँ

                   ------------

        -- विजय निकोर

       (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on October 3, 2018 at 2:34pm

रचना के मर्म तक जा कर, लेखक के मन में बैठ कर, आपने मुझको मान दिया, इसके लिए आभारी हूँ, भाई समर कबीर जी।आपके सुख के लिए प्रार्थना रहती है, भाई।

Comment by vijay nikore on October 3, 2018 at 2:30pm

सराहना से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय डा० छोटेलाल सिंह जी।

Comment by vijay nikore on October 3, 2018 at 2:30pm

आपने मेरा मनोबल बढ़ाया। सराहना से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by vijay nikore on October 3, 2018 at 2:28pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्र्सिंह जी।

Comment by vijay nikore on October 3, 2018 at 2:27pm

सराहना से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी।

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 10:50pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,मुग्ध हूँ इस रचना को पढ़ कर,क्या तारीफ़ की जाये इस प्रभावशाली,गम्भीर रचना की,एक शब्द 'चिन्ह' को बुनियाद बनाकर बहतरीन शिल्प में एक भरपूर रचना,कामयाब रचना,दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 2, 2018 at 6:30pm

आदरणीय विजय निकोर साहब बहुत अच्छी रचना आपने सृजित की बधाई स्वीकार करें

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 2, 2018 at 3:57pm

वाह। उपसर्ग  'अ ' वाले विशेषण /संज्ञा शब्दों  के अद्भुत सार्थक अनुप्रयोग के साथ बेहतरीन शिल्प में बहुत गहराई लिए बेहतरीन सार्थक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे साहिब।

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:23pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी रचना पर कुछ देर बाद हाज़िर होता हूँ ।

Comment by narendrasinh chauhan on September 30, 2018 at 3:14pm

बहोत सुन्दर रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
22 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
27 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
18 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
20 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service