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गजल २१२२ २१२२ 
बात जो मन में तही है
कुछ कही कुछ अनकही है
भार ढोती है जगत का
तब धरा यह पुज रही है
याद वो, आये न आये
पर सताती रोज ही है
है कठिन यह जान पाना
क्या गलत है क्या सही है
इस कदर छाया है दिल पर
हर जगह दिखता वही है
सच कहो अब चुप न बैठो
क्यों जमा मुँह में दही है
राम के दरबार में सब
आपकी खाता बही है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 13, 2018 at 6:01pm

ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत कही है आदरणीय..और आदरणीय समर जी ने एक ज्ञान बात भी बताई..बहुत बहुत शुक्रिया..

Comment by Neelam Upadhyaya on July 13, 2018 at 3:52pm

बढ़िया  ग़ज़ल की पेशकश के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 3:21pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 3:21pm

आदरणीय Samar kabeer जी दिल से शुक्रिया आपका आपने मेरी रचना को समय दिया और अतिमहत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराया, सादर नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 13, 2018 at 3:20pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2018 at 12:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

इस कदर छाया है दिल पर
हर जगह दिखता वही है
Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 11:28am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'क्या ग़लत है क्या सही है'

इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,इस सम्बन्ध में मंच को आपके माध्यम से एक महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहता हूँ ।

"सही"(फ़ारसी)--अर्थ: सीधा-रास्त, उमूमन 'सर्व'(एक दरख़्त,जो बहुत लम्बा और सीधा होता है)की सिफ़त के तौर पर इस्तेमाल होता है ।

"सहीह"(अरबी)--अर्थ: दुरुस्त-ठीक-बजा-तस्दीक़-

दस्तख़त ।

जब किसी शब्द को जांचना हो तो उसका उलट शब्द देखना चाहिये, जैसे "सीधा" का उलट होगा "टेडा"

"सहीह" का उलट होगा "ग़लत" ।

आम तौर पर लोग "सही" को "सहीह" के अर्थ में ले लेते हैं,जबकि ये सरासर ग़लत है,आम तौर पर "सही" का उच्चारण  "सहीह" कर लिया जाता है,लेकिन ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसमें प्रचलन में आये शब्दों से बचा जाना चाहिए ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2018 at 10:18pm

आ. भाई बसंत जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2018 at 4:55pm

दिल से शुक्रिया आपका आदरणीय Shyam Narain Verma जी 

Comment by Shyam Narain Verma on July 12, 2018 at 4:45pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

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