भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक स्थान के पास सड़क के किनारे दो पानी टिक्की के ठेले वाले सामने की साऊथ-इंडियन होटल में बढ़ती भीड़ से जलते हुए बातचीत में मशगूल थे।
"तू तो अच्छा मुंह चला लेता है! लम्बे भाषण भी दे सकता है! किसी बड़े राजनीतिक दल में शामिल हो जा, पता नहीं कब तेरे भी दिन फिर जायें!" ठेले में चार-पांच तरह के चटपटे पानी की बरनी संभालते पानी-टिक्की वाले ने दूसरे से कहा।
"ऐसी ही बात मैं तेरे लिए कहूं, तो? तू भी तो चतुराई से फूली हुई टिक्की में इतनी तरह के पानी पिला-पिला कर ग्राहकों के पेट और सेहत सही कराने के सपने दिखा कर उन्हें उल्लू बना देता है! तू क्यों न ज्वाइन कर लेता कोई बड़ी सी पार्टी?" उस सादा पानी-टिक्की वाले ने कुछ चिढ़ाते हुए पहले वाले से कहा।
" मैंने तो कुछ और ही सोच रखा है भाई!"
"क्या? बता ज़रा!"
"मेरा बड़ा पुत्तर पढ़ाई-लिखाई में बड़ा तेज़ है! सोच रहा हूं कि आगे पढ़ाने के बजाय 'पंडिताई' सिखवा दूं या 'साधू-संत' की दीक्षा दिलवा दूं! बिल्कुल नया गारंटिड चांस रहेगा पार्षद, विधायक या सांसद बनने का और मंत्री बनने का भी!" आंखों में चमक लाते हुए पहले वाले ने भीड़-भाड़ में ग्राहक तलाशने की कोशिश करते हुए कहा।
अपना ठेला तनिक खिसकाते हुए दूसरे साथी ने कहा- "हां, ये भी सही रहेगा। अपने असलम मियां को भी समझा देना, आगे देश में मज़े में रहना हो, तो संस्कृत सिखवा के अपने बेटे का भी चोला और झंडा बदल दे!"
"हां, लोकतांत्रिक पार्टी कहलाने के लिए ऐसे लोगों की भी मांग रहेगी न!" सादा पानी-टिक्की वाला यह कहते हुए ज़ल्दी-ज़ल्दी कुछ उबले आलू मसलने लगा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा और मुहतरमा राहिला साहिबा, जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब और जनाब विजय निकोरे साहिब।
आदरणीय सर जी,व्यंगात्मक भाषा शैली में देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर अच्छा कटाक्ष.प्रस्तुत रचना पर बधाई स्वीकार कीजिएगा.
अच्छा संदेश देती इस लघु कथा के लिए मुबारकबाद । दिल कहता है आप ऐसे ही और लिखते रहें, भाई जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी
जनाब शेख़ शहज़ाद साहिब , सीख देती उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
बहुत सटीक रचना, वर्तमान में देश कब हालात जिस तरह के हैं उसपर बहुत बढ़िया कटाक्ष। खूब बधाई
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
इशारों ही इशारों में व्यंजनामूलक शैली में वर्तमान राजनीति, धर्म, राजनेताओं पर अच्छा कटाक्ष किया । देश के आध्यात्मिक गुरू गंदी राजनीति की शरण में जाकर अपना बेड़ा गर्क कर रहे हैं ।इन पर विश्वास उठता जा रहा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online