"अय.. हय .. मेरी ताजमहल... मेरी नाज़महल... !" अपने प्यार की पहली निशानी को नयी पोषाक देकर चूमते हुए डॉक्टर साहिब ने कहा- "अब तो ख़ुश हो जा, तेरी मनपसंद टीवी विज्ञापनों वाली सारी चीज़ें दिला दीं तुझे! मॉडर्न हो गई अब तो मेरी 'महजबीं'!"
"लेकिन पप्पा, चेहरे के इन पिम्पल्ज़ और दागों का क्या होगा? कितने क़िस्म की दवाइयां और क्रीम ट्राइ कर डालीं, चेहरे पर पहले वाली चमक आती ही नहीं!" आइना सोफ़े पर पटकते हुए 'जवानी की दहलीज़ पर खड़ी' बिटिया ने कहा!"
"आदतों पर कन्ट्रोल कर! रुटीन और खान-पान सुधार ले! कित्ती बार कहा!" आइना उठाकर अपनी सुंदर शक्ल निहारते हुए आधुनिक दादीजान ने कहा - "देखो हम और हमारी यह 'कश्मीर की कली' बहू घरेलू नुस्ख़ों से ही सब कुछ यूं मेंटेन रखते हैं! अपने 'सरकार' के भरोसे नहीं रहते, वरना 'ताजमहल' तक का बंटाधार हो जाये!"
बिटिया अपनी अम्मीजान और दादीजान की चमकती शक्लें कुछ पल निहारकर बोली - "आफ़रीं.. आफ़रीं .. यह तो आप दोनों की क़ामयाब 'लव-मैरिज' का राज़ है! हमारे इस ज़माने में वैसा 'लव' और 'लवर' नसीब में कहां! अब तो 'यूज़ ऐंड थ्रो', बस!"
इतना कह कर दूसरे कमरे में जाकर तकिये में मुंह छिपा कर वह सिसकने लगी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा ।
चूंकि बेटी से कहा लाड़ से, इसलिए मेरी ताजमहल लाड़ से पापा ने कहा। वैसे '' मेरे ताजमहल' ही सही है। बहुत-बहुत शुक्रिया ध्यान दिलाने के लिए। जनरेशन गैप को पाटने के लिए भी साहित्य रचा गया है, लेकिन आज की पीढ़ी ऐसी बातें पढ़ना व समझना ही नहीं चाहती। सरकारें तक विकास की पश्चिमी आंधी की चपेट में आ कर अपनी पीढ़ी और विरासतों के सौदे करने पर आमादा हो कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारकर वोट बैंक तैयार कर रही हैं, बस!
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
काफी बड़ा जनरेशन गेप आ गया है । केवल उपमाएँ देने में ही अच्छा लगति। है । न्यू जनरशन जैसे आचार-विचार, भाषा-शैली , रहन-सहन और आचरण भूल गए हैंं । भागमभाग भरी ज़िंदगी। के आप हम सब शिकार हैं । चाहकर भी हम कुछ नहीं कर सकते । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बहुत अच्छी सार्थक सन्देश देती हुई लघु कथा सच कहा वो पहले सी सच्ची महब्बत अब कहाँ .बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय उसमानी जी, नमस्कार । क्या खूब कहा है - "आदतों पर कन्ट्रोल कर! रुटीन और खान-पान सुधार ले! कित्ती बार कहा!" । पर नयी जेनेरेशन को इन सब पर यकीन नहीं । बहुत अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।
'अय ..हय..मेरी ताज महल',भाई 'ताज महल'तो पुल्लिंग है?
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