ज़िन्दगी में जो हुआ सूद-ओ-ज़ियाँ गिनता रहा
बैठ कर मैं आज सब नाक़ामियाँ गिनता रहा
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा
और क्या करता बताओ इन्तिज़ार-ए-यार में
तैरती तालाब में मुर्ग़ाबियाँ गिनता रहा
रोकता कैसे मैं उनको नातवानी थी बहुत
बे अदब लोगों की बस गुस्ताख़ियाँ गिनता रहा
लोग भूके मर रहे थे और यारो उस तरफ़
कोई गोदामों में रक्खी बोरियाँ गिनता रहा
वो जलाकर ख़्वाब मेरे जा चूका था और मैं
राख से उड़ती हुई चिंगारियाँ गिनता रहा
एक मुद्दत हो गई है मयकशी छोड़े हुए
क्यों "समर"फिर आज ख़ाली शीशियाँ गिनता रहा
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सूद-ओ-ज़ियाँ--नफ़ा-नुक़सान
मुर्ग़ाबियाँ--पानी का परिन्दा
नातवानी--कमज़ोरी
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
//लोग भूके मर रहे थे और यारो उस तरफ़
कोई गोदामों में रक्खी बोरियाँ गिनता रहा
वो जलाकर ख़्वाब मेरे जा चूका था और मैं
राख से उड़ती हुई चिंगारियाँ गिनता रहा//.......
इतनी खूबसूरत गज़ल पढ़ने को मिली, दिल वाह-वाह कह रहा है, भाई समर जी।
आदरणीय समर सर बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल ..इस रचना पर ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के sath
आ. समर सर,
देरी से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ... दरअसल प्रवास में था अत: ग़ज़ल पढ़ कर भी टिप्पणी नहीं कर पाया.
आप ने ग़ज़ल कहकर इस ज़मीन को मेरे नाम किया ये आपका बड़प्पन है ...
वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन हुई है लेकिन अगर हासिल-ए-ग़ज़ल कहूँ तो शेर है ..
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वो जलाकर ख़्वाब मेरे जा चूका था और मैं
राख से उड़ती हुई चिंगारियाँ गिनता रहा.... क्या क्लासिकल अंदाज़ का शेर हुआ है ..बहुत ख़ूब
बस ऐसे ही शेर शाइरी की ओर खेंच लेते हैं..
इस शेर और इस ग़ज़ल लिए आप को बहुत बहुत बधाईयाँ
सादर
आ0 समर साहिब लाजबाब ग़ज़ल हुई है।
एक मुद्दत हो गई है मयकशी छोड़े हुए
क्यों "समर"फिर आज ख़ाली शीशियाँ गिनता रहा। बहुत खूब
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वाह आदरणीय समर जी तबियत ख़ुश हो गयी सर ।
किस किस शेर की तारीफ करूँ ।
"
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा"
दिली दाद सर ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा वाह! वाह! बहुत ख़ूब ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
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