मोहब्बत ...
गलत है कि
हो जाता है
सब कुछ फ़ना
जब ज़िस्म
ख़ाक नशीं
हो जाता है
रूहों के शहर में
नग़्मगी आरज़ूओं की
बिखरी होती
ज़िस्म सोता है मगर
उल्फ़त में बैचैन
रूह कहाँ सोती है
मेरे नदीम
न मैं वहम हूँ
न तुम वहम हो
बावज़ूद
ज़िस्मानी हस्ती के
खाकनशीं होने पर भी
वुज़ूद रूह का
क़ायनात के
ज़र्रे-ज़र्रे में
ज़िंदा रहता है
तिश्नगी ज़िन्दा रहती है
दिल आरज़ू का
धड़कता रहता है
ज़िंदगी तो
उन्स का नाम है
बे-जिस्म होने के बाद भी
रूहों में
इश्क का अलाव
फ़िज़ाओं की धड़कनों में
ज़िंदा रहता है
लम्हे मोहब्बत के
इतनी आसानी से
फ़ना नहीं होते
वस्ल के लम्हों में
कुछ भी दरमियाँ नहीं होता
तू और मैं का फ़र्क
मिट जाता है
शर्म-ओ-हया का हिज़ाब
हट जाता है
साये ज़िस्म बन जाते हैं
हकीकत को गुनगुनाते हैं
रूह से
जिस्म का मुलम्मा हट जाता है
हिज़्र का
डर नहीं होता
यकीं के बाम पे
बस इक पाक गौहर सी
ज़िंदगी होती है
आसमानों की
चादर ओढ़कर
मोहब्बत
चैन की नींद सोती है
ये हुस्न-ओ-इश्क की हिकायतें
ज़िंदा रहेंगी
हमारे बाद भी
अनफास की कबाओं में रक्स करेंगी
गर्म साँसों में लिपटी
साअतें
नदीम =मित्र,सखा ,गोहर=मोती ,उन्स =मोहब्बत ,हिकायतें =कथाएं , अनफास= सांसें ,साअतें =क्षण,पल
सुशील सरना
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति आपकी मधुर प्रशंसा की आभारी है।
आदरणीय नीलम उपाध्याय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी प्रस्तुति को अपना स्नेह देने का दिल से आभार।
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब, सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
जनाब सुशील सरना साहिब आदाब, अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सुशिल सरना जी, अच्छी अतुकांत कविता। बधाई
बहुत सुन्दर ॥ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ |
शीर्षक तहत बेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। कठिन शब्दार्थ हेतु सादर धन्यवाद।
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