चाँद बन जाऊंगी ..
कितनी नादान हूँ मैं
निश्चिंत हो गई
अपनी सारी
तरल व्यथा
झील में तैरते
चाँद को सौंपकर
हर लम्हा जो
एक शिला लेख सा
मेरे अवचेतन में
अंगार सा जीवित था
निश्चिंत हो गई
उसे
झील में तैरते
चाँद को सौंपकर
उम्र कैसे फिसल गई
अपने तकिये पर
तुम्हारी गंध को
सहेजते -सहेजते
कुछ पता न चला
निश्चिंत हो गई
अपनी चेतना के जंगल में व्याप्त
श्वासों में जीवित
श्वासों की गंध को
झील में तैरते
चाँद को सौंपकर
मिलूंगी
मैं
मेरे बाद भी
यहीं
तुम्हें ढूंढते हुए
मिलोगे तुम भी
मुझे
यहीं
इसी झील पर तैरती
मेरी कल्पनाओं की छवि को
साकार करते हुए
उस दिन
हाँ, उस दिन
मैं
पूर्णतः और अपूर्णतः के
मध्य की महीन दूरी को मिटा
निश्चिंत हो जाऊंगी
तुम्हारी अदृश्यता में
स्वयं के शेष को
समाहित कर
चाँद बन जाऊंगी
स्वयं को
झील में तैरते
चाँद को सौंपकर
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी प्रस्तुति को अपना स्नेह देने का दिल से आभार।
आदरणीय विजय निकोर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति आपकी मधुर प्रशंसा की आभारी है।
आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
वाह आदरणीय कितने सुन्दर भावों की उतनी ही खूबसूरती से समेटा है..
आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत सुंदर कविता । बधाई ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत ही सुंदर आदरणीय सुशील जी ।
आदरणीय श्याम नारायण जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय, सादर |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online