मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं
कंठ चीर तरु सरकंडों के
अल्गोज़े की बीन बनी है
अंतड़ियों के बान पूरकर
तिलचट्टों ने खाट बुनी है
मजबूरी ने कोख में फ़ाके बोए हैं
लूट खसोट के दंगल भिड़तु
किसने लूटी किसकी जाई
बुक्का फाड़ देवियाँ रोती
सनी लहू में साँजी माई
कंधों पे संयम के मुर्दे ढोए हैं
छल के पैने नाखूनों से
देह खुरचते जात धरम की
मक्कारी की आरी लेकर
लाश बिछाते लाज शरम की
प्रश्न भरोसे की आँखों से रोये हैं
रिश्तों की चिल्मों के भीतर
ओछेपन की आग भरी है
जिव्हा के पनघट के ऊपर
धरी डोलची जहर भरी है
काँव काँव में तेरे मेरे खोए हैं
गुड्डे गुडिया छुपम छुपाई
आट्टे बाट्टे लल्ला लोरी
गिट्टे कंचे इक्क्ल दुक्कल
गुल्ली डंडा डंडा डोली
कम्प्यूटर मोबाइल ने सब धोए हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० बृजेश कुमार बृज जी आपको ये नवगीत पसंद आया दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .
बहुत ही शानदार सृजन किया है आदरणीया...सादर
आद० सतविन्द्र भैया आपको नवगीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत ब्बहुत आभारी हूँ
वाहः वाहः वाहः,अद्भुतnvgeet सर्जना हुई है। बहुत बहुत बहुत बधाई आदरणीय राजेश दीदी
आद० लक्ष्मण भैय्या आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
आद महेंद्र कुमार जी आपको नवगीत पसंद आया दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
आद० बलराम जी ,नवगीत आपको पसंद आया दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .
आ. राजेश दी, वर्तमान हालातों को उजागर करता बेहतरीन गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
बढ़िया नवगीत है आ. राजेश मैम. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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