2122--1122--1122--22
.
एक पत्थर पे भी उल्फ़त का असर होता है
दिल मे जज़्बा हो तो दीवार में दर होता है
.
घुप अँधेरे में उजाले की किरण सा जीवन
जो भी जी जाए, वो दुनिया में अमर होता है
.
उसको हालात की गर्मी की भला क्या चिन्ता
जिसकी दहलीज़ पे अनुभव का शजर होता है
.
आपसी प्यार मकीनों में हो, घर तब होगा
दरो-दीवार का ढांचा तो खँडर होता है
.
वो न सह पायेगा इक पल भी हक़ीक़त की तपिश
जिसके ख़्वाबों का महल मोम का घर होता है
.
हम फ़क़ीरों को ज़ियादा की नहीं चाह 'दिनेश'
जितना हासिल है, बस उतने में गुज़र होता है
.
मौलिक व अप्रकाशित।
Comment
जनाब दिनेश कुमार साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।मतले के उला मिसरे यह ऑप्शन भी हो सकता है । संगदिल पर भी मुहब्बत का असर होता है ।
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,आप कभी कभी पटल पर आते हैं,इस कारण से कुछ नये सदस्य आपको भी नया सदस्य समझते हैं ।
उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आद0 दिनेश कुमार जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने, शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर
वो न सह पायेगा इक पल भी हक़ीक़त की तपिश
जिसके ख़्वाबों का महल मोम का घर होता है
.
हम फ़क़ीरों को ज़ियादा की नहीं चाह 'दिनेश'
जितना हासिल है, बस उतने में गुज़र होता है
.
उम्दा ग़ज़ल हुयी है आदरणीय दिनेश कुमार जी मुबारकबाद स्वीकारें। ....
आदरणीय दिनेश जी, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
'दिल मे जज़्बा हो तो दीवार में दर होता है' बहुत खूब!
'एक पत्थर पे भी उल्फ़त का असर होता है' की जगह 'किसी'पत्थर पे भी उल्फ़त का असर होता है' भी एक विकल्प हो सकता है.
'देर से हो मगर उल्फत का असर होता है' या 'चाहे हो देर से उल्फत का असर होता है' के विकल्प भी आजमाए जा सकते हैं.
नव वर्ष मंगलमय हो !
सादर
बहुत बढ़िया पेशकश। हार्दिक बधाई आदरणीय दिनेश कुमार जी। गुरूजन की टिप्पणियां हमें मार्गदर्शन प्रदान कर रहीं हैं।
हौसला अफ़ज़ाई के लिए दिली शुक्रिया आ. मुहम्मद आरिफ़ साहब।
उसको हालात की गर्मी की भला क्या चिन्ता
जिसकी दहलीज़ पे अनुभव का शजर होता है ।वाह! वाह!! बहुत ही बेहतरीन शे'र हुआ है । मज़ा आ गया ।
बढ़िया ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद आदरणीय दिनेश कुमार जी ।
हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया आ. राम अवध जी।
दरो-दीवार वाले मिसरे में typing मिस्टेक तो संभव है, लेकिन बह्र में है। इसी प्रकार मक़्ते का सानी भी बह्र में ही है सर जी।
सादर।
आदरणीय दिनेश कुमार जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई।
मेरे ज्ञान के अनुसार दरो दीवार का ढाँचा मिसरा बह्र में नहीं है। मक्ता का शानी मिसरा भी बह्र में नहीं है। इसको ऐसा किया जा सकता है।
जितना हासिल है उसी में ही गुज़र होता है। सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online