For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपना सा क्यूँ न मुझको बना कर चले गये।

रोते रहे खुद, मुझको हँसा कर चले गये-
काफ़िर से अपना दिल वो लगाकर चले गये।

पूँछा जो उनसे घर का पता मैंने दोस्तों-
हौश अपना कू-ए-यार बता कर चले गये।

तारीक में वो शम्मा जला कर चले गये-
मैं रूठी और वो मुझको मना कर चले गये।

ग़ाफ़िल थी जिनके इश्क को लेकर मैं आज तक-
तालिब वो मुझको अपना, बना कर चले गये।

मदहोश सी रहती हूँ, न कुछ होश है मुझको-
जब से वो बादः-ए-इश्क पिला कर चले गये।

ताबीर क्या दूँ वस्ल की, ज़ाइद मैं कहूँ-
जब रूख से वो हिजाब हटा कर चले गये।


जाते हुए न रोक सकी,उनको आज मैं-
वो मुझसे अपना हाथ छुड़ा कर चले गये।

अश्कों ने मेरे पूँछा, उनसे जाने का सबब-
मजहब है मुख़्तलिफ ये बता कर चले गये।

खामोश खुद जलते रहे हिज्र-ओ-फिराक में-
"अपना सा क्यूँ न मुझको बना कर चले गये।"


काफ़िर- इस्लाम को न मानने बाला
हौश- घर, जगह
कू-ए-यार :प्रेमिका की गली
तारीक- अँधेरा
ग़ाफ़िल- अन्जान
तालिब- इच्छुक, अभिलाषी
बादः-ए-इश्क: प्रेम मदिरा
ज़ाइद- अधिक, फालतू
मुख़्तलिफ- भिन्न, अलग

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रक्षिता सिंह on November 29, 2017 at 9:42pm
आदरणीय, कबीर जी।
मेरा मार्गदर्शन करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। मैं अपनी त्रुटियों को सुधारने का प्रयास करूँगी।
Comment by रक्षिता सिंह on November 29, 2017 at 9:35pm
आदरणीय, अमित जी मेरा हौसला बड़ाने के बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by Amit Kumar "Amit" on November 27, 2017 at 5:52pm
आदरणीया रक्षिता जी बहुत अच्छी गजल कहने के लिए बहुत-बहुत बधाइयां आपने बहुत अच्छा प्रयास किया।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2017 at 11:06am
मोहतरमा रक्षिता सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

'काफ़िर से अपना दिल वो लगाकर चले गए'
इस मिसरे में 'काफ़िर'शब्द काम तो सही कर रहा है,लेकिन आपने इस शब्द का जो अर्थ दिया है वो गलत है,'काफ़िर'शब्द के अर्थ हैं,दुश्मन,बैगाना, अफ़ग़ानिस्तान का एक क़बीला, नास्तिक ।
इसी तरह दूसरे शैर में 'हौश'शब्द का अर्थ भी गलत है ।
तीसरे शैर में 'तारीक'को "तारीकी"करना उचित होगा ।
पांचवें शैर का सानी मिसरा लय में नहीं है ।
छटे शैर का ऊला मिसरा भी लय में नहीं है ।
आठवें शैर का ऊला मिसरा भी लय में नहीं है ।
Comment by रक्षिता सिंह on November 25, 2017 at 1:07pm
बहुत बहुत शुक्रिया,
आदरणीय विजय जी।
Comment by vijay nikore on November 25, 2017 at 8:11am

अच्छी गज़ल ! लुत्फ़ आ गया। बधाई।

Comment by रक्षिता सिंह on November 24, 2017 at 6:38pm
बहुत बहुत शुक्रिया !
माननीय आरिफ जी।
Comment by Mohammed Arif on November 24, 2017 at 9:53am
आदरणीया रक्षिता जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service