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मन में आत्मा में आॅंखों में,

मीठी-मीठी बातों में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
स्नेह में ममत्व में भावनाओं में,
मूल्यों में सम्मान में दुआओं में,
हर क्षेत्र हर दिशाओं में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
वादों में इरादों पनाह में,
विश्वास में परवाह में,
वांछितों की चाह में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
आवाज में अंदाज में,
प्रजा में सरताज में,
कल में आज में,
हर रूप में हर राज में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
सुख दुख में त्यौहारों में,
एक में हजारों में,
मौन में इशारों  में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
समीप में दूरी में,
बलात में मजबूरी में,
शान में जी हुजूरी में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
जमीन पर ऊॅंचाई में,
भीड़ में तन्हाई में,
रोजी-रोटी की कमाई में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
हाट में बाजार में,
मेले में त्यौहार में,
पवित्रता की आड़ में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
नेतृत्व में अभिनय में,
सहयोग में संबंधों में,
नेत्रधारित अंधों में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
सड़कों में पगडंडियों में,
मैदानों में,
हर जगह हर पायदानों में,
चरित्र गिर रहा है,
मत गिरने दो।
रक्तों में भक्तों में,
सशक्त और अशक्तों में,
रंगों में रिस्तों में,
सतत और किस्तों में,
मेरी आत्मा का चित्र,
इन दायरों में घिर रहा है,
मेरा भी चरित्र गिर रहा है,

प्रयास है कि
मत गिरने दूं।

मौलिक व अप्रकाशित
,

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Comment

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Comment by Manoj kumar shrivastava on November 23, 2017 at 9:54pm

आदरणीय श्रीवास्तव जी आपका कोटिशः आभार, आपका स्नेह इसी तरह बना रहे, यही कामना करता हूं।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2017 at 8:13pm

बहुत बढ़िया  आआ०

Comment by Manoj kumar shrivastava on November 21, 2017 at 7:15pm
आदरणीय शुक्ला जी आपका कोटिशः आभार।
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 21, 2017 at 7:14pm
आदरणीय मोहित मिश्रा जी आभार स्वीकार करें।
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 21, 2017 at 7:13pm
आदरणीय बृजेश जी सादर आभार।
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 21, 2017 at 7:13pm
आदरणीय कुशक्षत्रप जी सादर आभार स्वीकार करें। सतत मार्गदर्शन की अपेक्षा करता हूँ।
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on November 21, 2017 at 6:22pm

बहुत सुंदर और सार्थक भ्रमर ५

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 21, 2017 at 1:06pm
बहुत ही बढ़िया रचना..बधाई
Comment by Manoj kumar shrivastava on November 20, 2017 at 10:03pm

आदरणीय कश्यप जी सादर अभिवादन! आपके सतत मागर्गदर्शन से सुधार अवश्य संभव है, आपका स्नेह बना रहे
पुनः धन्यवाद स्वीकार कीजिएगा।

Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:53pm
आद0 मनोज जी सादर अभिवादन, रचना में आप शब्दो की मितव्ययिता लाईये, और शब्दों के दुहराव से बचिए, भावों को बांधने के लिए बहुत प्रसार पाठक को उबाऊपन बना देता है। आपका प्रयास उत्तम है। आपके लेखनी में धार है। बधाई देता हूँ इस सृजन पर। सादर

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