For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ख़त हमारे अगर जलाता है ; ग़ज़ल नूर की

२१२२/ १२१२/ २२ (११२)
ख़त हमारे अगर जलाता है
राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.
.
हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,
कौन अपनों के काम आता है?
.
सुन रखी होगी आग जंगल की
क्यूँ शरर को हवा दिखाता है.
.
शम्स मुझ सा शराबी है शायद 
शाम ढलते ही डूब जाता है.
.
ज़र्द चेहरा है बाल बिखरे हैं
इस तरह कौन दिल लगाता है.
.
देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा
ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.
.
इस पे चलता है रब्त का धंधा
कौन क्या है औ क्या कमाता है.
.
“नूर” जुगनू सही मगर फिर भी
तीरगी को तो मुँह चिढ़ाता है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 1050

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on October 31, 2017 at 12:12am

आदरणीय निलेश जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

 

देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा 
ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.
.
इस पे चलता है रब्त का धंधा
कौन क्या है औ क्या कमाता है.

विशेषत: ये दोनों शेर बहुत अच्छे लगे.

सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2017 at 11:22am
बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय नीलेश जी..सदर
Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 26, 2017 at 10:03pm
आदरणीय आपकी रचना अनमोल हैं, बहुत मीठे बोल हैं, मन प्रसन्न हो गया बधाई हो
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 6:05pm
आदरणीय भाई नीलेश जी कमल के ग़ज़ल है ग़ज़लें तो बहुत पढ़ने को मिलती हैं पर ऐसी शानदार ग़ज़ल अक्सर नहीं मिलती कमाल की इस ग़ज़ल के लिये अनंत शुभकामनाये सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 26, 2017 at 3:32pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 26, 2017 at 3:21pm

शुक्रिया आ. बासुदेव जी 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 26, 2017 at 3:14pm
जनाब नीलेश साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। शेर 6 सानी मिसरे की बह्र चेक कर लीजिए ।
(ख़्वाहम ख्वाह सर खपाता है )
( 2 1 1 2 1 2 122 2)--सादर
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 26, 2017 at 12:29pm
आ0 निलेशजी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई।
शम्स मुझ सा शराबी है शायद
शाम ढलते ही डूब जाता है. बहुत खूब। सुंदर कल्पना
.
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 3:47pm

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2017 at 3:46pm

शुक्रिया आ. समर सर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
21 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service