For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - किसी साधू के गहरे ध्यान से हम

२१२२, १२१२, २२ (११२) +१ 
.
किसी साधू के गहरे ध्यान से हम
बैठे रहते है इत्मिनान से हम.
.
तुम हो इक टूटती हुई दीवार
एक ढहते हुए मकान से हम.
.
गर ख़ुदा को वहाँ नहीं पाया,   
लौट आयेंगे आसमान से हम.   
.
बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें
ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.
.
बुतकदे में जलाने को दीपक
जाग जाते हैं इक अज़ान से हम.   
.
एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत 
साथ में थे बड़े जवान से हम. 
.
वस्ल का पल, ये जिस्म और वो “नूर”
हट गए अपने दरमियान से हम. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:57am

आ. तस्दीक साहब, लेकिन क्या शब्द के बीच में मी को गिराकर मि पढना योग्य होगा?
मैं विचार करता हूँ पुन:
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:56am

धन्यवाद आ. तस्दीक अहमद साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 7:55am

धन्यवाद आ. अफरोज़ जी 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 18, 2017 at 1:56pm
जनाब नीलेश साहिब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मेरे ख़याल से बह्र पर कोई असर नहीं होगा क्योंकि शब्द इत्मीनान में पढ़ने पर मी का ये गिर जाएगा ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 18, 2017 at 12:14pm
आ. निलेश जी इस रचना पर बहुत बधाई आपको
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:50am

जी,
मैं सोचता हूँ 
सादर 

Comment by Samar kabeer on October 18, 2017 at 11:48am
बह्र में तो नहीं आएगा ये शब्द,मिसरा बदलना होगा ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:26am

शुक्रिया आ. अजय जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:26am

शुक्रिया आ. समर सर... आपकी इस्लाह के अनुसार इत्मीनान और थीं कर लिया है मूल प्रति में .. लेकिन एक शंका है ..इत्मीनान    इत्मिनान पढने   से  बहर पर प्रश्न तो नहीं उठेगा ?...
अन्य सुझावों पर भी विचार करता   हूँ 
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2017 at 11:23am

शुक्रिया आ. दिनेश भाई जी 

व्यस्तता के चलते देर से आने की मुआफ़ी चाहूँगा 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
21 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service