2122 1212 22
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दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे
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मैं शिनावर हूँ तैर जाऊँगा नाव का इंतजार कौन करे
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-----मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश जी , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । बस - सिंगार ( शृंगार ) को 221 मे बान्धना चाहिये था शायद ।
//है मुख़ालिफ़ भले लहू अपना
रब्त को दरकिनार कौन करे //
सारी गज़ल ही दिलकश है, बहुत-बहुत बधाई।
आदरणीया राजेश जी आपकी यह ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद आई . गुनगुनाने में भी बढ़िया लगा / काबिले तारीफ इस ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर
आद० निलेश भैया ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाजी का तहे दिल से शुक्रिया .
बहुत खूब आ. राजेश दीदी
बधाई
बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी
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