For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रहमतों से फ़ासला हो जाएगा

मत कहो हमसे जुदा हो जाएगा ।
वह मुहब्बत में फ़ना हो जाएगा ।।


इश्क के इस दौर में दिल आपका ।
एक दिन मेरा पता हो जाएगा ।।

धड़कनो के दरमियाँ है जिंदगी ।
धड़कनो का सिलसिला हो जाएगा ।।

इस तरह उसने निभाई है कसम ।
वह हमारा देवता हो जाएगा ।।

ऐ दिले नादां न कर मजबूर तू ।
वो मेरी ज़िद पर ख़फ़ा होजाएगा ।।

पत्थरो को फेंक कर तुम देख लो ।
आब का ये कद बड़ा हो जाएगा ।।

मत निकलिए इस तरह बे पैरहन ।
फिर चमन में हादसा हो जाएगा ।।

अब अना से बढ़ रहीं नज़दीकियां ।
रहमतों से फ़ासला हो जाएगा ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 546

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on September 10, 2017 at 10:28pm
भाई नवीन जी ग़ज़ल के लिए बधाई,
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2017 at 11:02pm
आ0 कबीर सर कुँअर बेचैन जी ने एक शेर में पत्थर फेंकने से पानी की ऊँचाई बढ़ने का जिक्र किया है । फिर भी मैं आपकी बात को मान लेता हूँ । नमन।
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2017 at 10:58pm
आ0 कबीर सर नमन ।ठीक करता हूँ सर ।
Comment by Samar kabeer on September 7, 2017 at 10:53pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'पत्थरों को फेंक कर तुम देख लो
आब का ये क़द बड़ा हो जायेगा'
ये शैर तार्किकता के हिसाब से ठीक नहीं,एक तो ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर'फेंक कर'और दूसरी बात ये कि "क़द"ऊँचाई को कहते हैं,फैलाव को नहीं,इस शैर को या तो हटा दें या दूसरे तरीक़े से कहें ।
'मत निकलये इस तरह बे पैरहन'
यानी वो निर्वस्त्र निकल रहा है?
इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-
'मत निकलना आप घर से बेनिक़ाब'
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2017 at 8:42pm
आ0 राज नवादवी साहब हार्दिक आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on September 7, 2017 at 8:41pm
आ0 मो0 आरिफ साहब तहेदिल से शुक्रिया
Comment by Mohammed Arif on September 7, 2017 at 2:13pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by राज़ नवादवी on September 7, 2017 at 12:12pm

आदरणीय नवीन मणि जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है, मुबारकबाद क़ुबूल करें. 

पत्थरो को फेंक कर तुम देख लो ।
आब का ये कद बड़ा हो जाएगा ।।

मत निकलिए इस तरह बे पैरहन ।
फिर चमन में हादसा हो जाएगा ।।

बहुत खूब, सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
16 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
17 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service