For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -कायम रहा रुतबा तेरा

2212 2212 2212 2212

बस रात भर की बात थी , फिर भी रहा पहरा तेरा ।
ऐ चाँद तेरी बज़्म में कायम रहा रुतबा तेरा ।।

वो तीरगी जाती रही रोशन लगी हर शब मुझे ।
मेरे तसव्वुर में कभी जब अक्स ये उभरा तेरा ।।

टूटा हुआ तारा था इक हँसता रहा क्यूँ कहकशां ।
यूँ ही जमीं से देखता मैं रह गया लहज़ा तेरा ।।

देकर गई है मुफ़लिसी ,कुछ तज्रिबा भी कीमती ।
मुझको अभी तक याद है ,बख़्शा हुआ सदक़ा तेरा।।

है जिक्र तेरे हुस्न का बाकी कोई चर्चा नहीं ।
है चार सू खुशबू तेरी छाया रहा जलवा तेरा ।।

रानाइयों के फेर में हम भी हरम में आ गए ।
देखा हया के वास्ते गिरता रहा परदा तेरा ।।

सारा ज़माना हो गया दुश्मन मेरा इस बात पर ।
कातिल बनाकर उम्र भर जारी रहा फ़तबा तेरा ।।

नज़रों की थी ग़फ़लत या फिर
वह ख्वाब था मेरा कोई ।
महफ़िल में चर्चा है बहुत आकर चला जाना तेरा ।।

मायूस है सारा चमन मायूस दीवाने हुए ।
जब से दुपट्टे में छिपा है चाँद सा चेहरा तेरा ।।

खामोशियों के बीच से उठने लगे हैं कुछ सवाल ।
वो मिन्नतें करता रहा पर दिल नहीं पिघला तेरा ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कॉपी राइट

Views: 746

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 3, 2017 at 5:36pm
सूंदर रचना
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 2, 2017 at 11:16am
आ0 भाई गुरुप्रीत जी सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 2, 2017 at 11:15am
आ0 कबीर सर सदैव आपका सम्मान हृदय से है ।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2017 at 11:08am
बहुत उम्दा तब्दीली,मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on August 2, 2017 at 11:01am

आदरणीय नवीन मणि जी,, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही  है आपने,, बधाई कुबूल करें 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 1, 2017 at 9:27pm
भाई बसन्त कुमार जी सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 1, 2017 at 6:46pm
आदरणीय कबीर सर ग़ज़ल के आखिरी शेर की आखिरी पंक्ति में परिवर्तन कर दिया है । वो मिन्नतें करता रहा पर दिल नहीं पिघल तेरा ।।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 1, 2017 at 6:27pm
आ0 कबीर सर बहुत देर से आपकी टिप्पणी प्रतीक्षित थी । हार्दिक नमन के साथ आभार । शीघ्र ही दूसरा शेर लिख कर और ऑडिट करके पोस्ट करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 1, 2017 at 6:12pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

चौथे शैर में 'अह्ल-ए-ख़ुदा'बहुवचन का सीग़ा है, इसकी जगह "बख़्शा हुआ" कर सकते हैं ।

आख़री शैर में 'सजदा तेरा'ग़लत है,सजदा तुझे'सही होगा,लेकिन रदीफ़ की वजह से ऐसा करना मुमकिन नहीं,शैर ख़ारिज करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 1, 2017 at 5:03pm

बहुत खूबसूरत अल्फाज वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service