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आँखों के दरिया के जल का भी बँटवारा होना चहिये- गजल

22 22 22 22 22 22 22 22

आँखों के दरिया के जल का भी बँटवारा होना चहिये
दुखिया के गम का कुछ ऐसे वारा न्यारा होना चहिये

मज़हब कौम पंथ वंशावलि सबका आप ध्यान धरिये पर
जिसकी वादी में रहते हैं मुल्क वो प्यारा होना चहिये

गीत ग़ज़ल कविता अभिभाषण विधा भले ही चाहे जो हो
पर पंकज के शब्दों में एहसास तुम्हारा होना चहिये

ऊँचा उठने की ख्वाहिश हो तो अन्तस को क्षितिज बनाएं
पर ये याद रहे धरती पर पाँव हमारा होना चहिये

बन्दर घुड़की कब तक साहब कब तक जख्म नए खाएंगे
अब तो अरि की छाती पर आघात करार होना चहिये

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 2, 2017 at 7:43am
आदरणीय आशुतोष सर अभिप्रेरक टिप्पड़ी के लिए सादर आभार
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 1, 2017 at 4:08pm

आदरणीय भाई पंकज जी सार्थक सन्देश देती और स्वाभिमान से जीने के लिए प्रेरित करती इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 28, 2017 at 6:56pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 28, 2017 at 6:56pm
आदरणीय बसन्त जी सादर आभार
Comment by Shyam Narain Verma on June 27, 2017 at 4:59pm
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 27, 2017 at 3:53pm

उत्तम प्रयास 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 27, 2017 at 10:51am
आदरणीय नरेंद्र सिंह जी सादर अभिवादन और आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 27, 2017 at 10:50am
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम
Comment by narendrasinh chauhan on June 27, 2017 at 10:50am

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 10:44am
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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