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तरही गज़ल-माह अप्रैल 2017 के अनुरूप

1222 1222 122

भुला दूँ अपनी आदत है? नहीं तो
यहाँ मन खुश निहायत है? नहीं तो

सुकूँ है चीज़ क्या एहसास तो दे
सिवा तेरे भी आयत है? नहीं तो

नज़र में है नमीं सब स्वप्न भींगे
किसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो

महज़ है नाम का भ्रम औ नहीं कुछ
तिलक टोपी इबादत है? नहीं तो

मिलो तो मन से वर्ना तुम न मिलना
छिपाने की इजाज़त है? नहीं तो



मौलिक अप्रकाशित
तरही ग़ज़ल माह अप्रैल के अनुरूप, देर से पेश

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 27, 2017 at 12:00am
आदरणीय महेंद्र सर सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 26, 2017 at 11:59pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 26, 2017 at 11:59pm
आदरणीय बाऊजी सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 26, 2017 at 11:59pm
आदरणीय आरिफ़ सर सादर आभार
Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 11:48am

महज़ है नाम का भ्रम औ नहीं कुछ, तिलक टोपी इबादत है? नहीं तो 

बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय पंकज जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2017 at 12:21pm

आदरणीय पंकज भाई , गज़ल अच्छी हुई है ... बधाइयाँ स्वीकार करें । मतले के मिसरों को गद्य जैसे खोल कर देखियेगा .. शायद कमी नज़र आये .. मुझे ऐसा लग रहा है ।

Comment by Samar kabeer on May 1, 2017 at 7:54pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on May 1, 2017 at 1:26pm
आदरणीय पंकज जी आदाब, शे'र दर शे'र दाद के साथ ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगें ।

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