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भँवरे कलियाँ तरु झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|
दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|
कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|
जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|
नव लाल गुलाल मले मितवा हँसती सखियाँ हँसती नगरी|
कजरा लहका गज़रा महका मुख लाल हुआ पिघली सगरी|
तन काँप उठा धड़का जियरा चुप देह रही चुप होंठ हिले|
पर बोल पड़ी अँखियाँ पगली छलकी झट प्रीत भरी गगरी|
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ,आपको ये सवैया छंद मुक्तक पसंद आये दिल से आभार आपका .
फाग से सरोबोर रचना के लिए आपको बधाई स्वीकार हो
मनमोहक रचना के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सादर बधाई प्रेषित है
आदरनीया राजेश जी , बहुत सुन्दर सवैया की रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
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